हालात यह है कि विश्व पर्यावरण दिवस पर भी पौधों की बिक्री न के बराबर रही। पौधरोपण के प्रति शहरवासियों के कम होते रुझान के कारण शहर से हरियाली कम हो गई है। पर्यावरणीय मानकों के अनुसार किसी भी जिले में कम से कम 20 प्रतिशत हरियाली होनी चाहिए, लेकिन जोधपुर में यह 2 प्रतिशत से भी कम है। शहर की प्रमुख सडक़ों पर जिला प्रशासन की ओर से विकास के नाम काटे गए एक पेड़ के बदले 10 पेड़ लगाने का नियम भी कागजों में सिमट कर रह गया है।
राज्य सरकार ने वननीति 2010 के अनुसार वनीकरण को बढ़ावा देने व वृक्षारोपण में जनभागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2012 में पौधों के विक्रय दरें घटाकर मात्र एक रूपए में देने का निर्णय लिया था। इसमें निजी संस्थाओं, औद्योगिक संस्थाओं, वाणिज्यक प्रतिष्ठानों, राजकीय विभागों, शिक्षण संस्थानों, धाार्मिक संस्थाएं, भारतीय स्काउट एवं गाइड, एनसीसी, एनएसएस, इॅको फ्रेन्डली स्वयंसेवी संस्थाएं व सार्वजनिक ट्रस्ट को एक रूपए में अधिकतम एक हजार पौधे प्राप्त करने की सुविधा दी गई थी।
इन पौधों में नीम, बड़, अशोक, पीपल, सरेस, इमली, कदम्ब, महुआ, अर्जुन, चुरैल, रोहिड़ा एवं खेजड़ी आदि वांछित प्रजाति के पौधे भी शामिल किए गए थे। जोधपुर जिले में वन विभाग की तीन बड़ी नर्सरियां शहर में है जिनमें डीआरएम कार्यालय के पास लोक्सवेल, चांदपोल भूतेश्वर वन क्षेत्र में भूतेश्वर और एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास अरबन नर्सरी है। ग्रामीण क्षेत्र में शेरगढ़, बालेसर के सेखाला, बाप, फलोदी, लूणी के सालावास व डोली में भी वन विभाग की नर्सरियां हैं। इन नर्सरियों में 1 रुपए में पौधा और 6 माह का पौधा 5 रुपए और 1 साल का पौधा 8 रुपए में मिलता है।
इनका कहना है… जुलाई में मानूसन की पहली बारिश के बाद ही पौधों की बिक्री शुरू होती हैं। गर्मी के मौसम में पौधे आमतौर पर कम ही बिकते है।
मदन सिंह बोडा , क्षेत्रीय वन अधिकारी