जोधपुर

Save Heritage : मीरां की नगरी मेड़ता में धूल में दबे पड़े हैं ऐतिहासिक शिलालेख

-12 वीं से 19 वीं शताब्दी तक के शिलालेखों से भरी है मेड़ता की धरा , ऐतिहासिक मीरां महल की हो रही दुर्दशा

जोधपुरMay 19, 2018 / 09:10 pm

Kanaram Mundiyar

Neglect of Historic Inscriptions in the Merta city

समय रहते संरक्षण नहीं किया तो लुप्त हो जाएगा इतिहास
बासनी(जोधपुर).
शौर्य, वीरता एवं भक्ति की गाथाओं से भरे राजस्थान के मेड़ता क्षेत्र में ऐतिहासिक शिलालेख उपेक्षा रूपी में धूल में नष्ट होने की कगार पर हैं। धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के बावजूद प्रशासन और पुरातत्व विभाग की ओर से ऐसे शिलालेखों की सुध तक नहीं ली गई हैं। मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट एवं चौपासनी शिक्षा समिति की से संचालित राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी के अप्रकाशित शिलालेखों के खोज अभियान में ऐसे हालात सामने आए हैं।
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संस्थान के शिष्टमंडल ने हाल ही मीरां नगरी मेड़ता शहर व मेड़ता के ग्रामीण क्षेत्र में प्राचीन शिलालेखों के बारे में शोध किया है। शोध यात्रा के दौरान पाया गया कि इस क्षेत्र में 12 वीं शताब्दी से लेकर 19 वीं शताब्दी के शिलालेख जो क्रमष: मेड़ता क्षेत्र के कृषि मण्डी परिसर, देवराणी जलाय, दूदागढ़, विष्णुसागर के तट पर और मेड़ता के आस-पास के गांवों में जिनमें बोरून्दा, रीयां, आलनियावास, गुलर, भखरी आदि जगहों पर 72 अप्रकाशित शिलालेख खोजे गए हैं। इनमें 12 वीं शताब्दी के गोवर्धन स्तम्भ लेख, कीर्ति स्तम्भ लेख के साथ ही 17 वीं शताब्दी के वृह्दाकार छत्री, स्मारक, लेख महत्त्वपूर्ण है।
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शोध यात्रा के दौरान आलनियावास के सूरजमल, मेड़ता के जालमसिंह, रीयां के शेरसिंह, बिखरणिया के डूंगरसिंह, मेड़ता के ही सिंघवी बाघमल और पोकरणा ब्राह्मण चौथमल के शिलालेख भी खोजे गये। इसके अलावा विष्णु सागर स्थित अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति प्राप्त ‘मीरां’ का ‘ऐतिहासिक मीरा महल’ भी नष्ट होने के कगार पर है।

संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. विक्रमसिंह भाटी ने बताया कि वर्तमान में मेड़ता से प्राप्त इन शिलालेखों का न सिर्फ मारवाड़ के नव इतिहास लेखन में बल्कि गांवों की जातिगत एवं प्रशासनिक व्यवस्था के साथ ही छतरी स्थापत्य व वास्तुशिल्प के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। गांव की शोध यात्रा के दौरान पाया गया कि 70 प्रतिशत छतरियों पर प्रतिष्ठापित देवलियां गायब है। वहीं छतरियां गिरने की कगार पर है। बिना छतरी के भूखण्ड पर प्रतिष्ठापित देवलियों की स्थिति भी नाजुक बनी हुई है। राष्ट्र की इन अमूल्य धरोहर की सुरक्षा समय पर नहीं हुई तो इन महत्त्वपूर्ण स्मारक स्थलों का महत्त्व न सिर्फ गौण हो जाएगा बल्कि इनके ऐतिहासिक अवशेष भी गर्त में समा जाएंगे।
 

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