अष्टमी के दिन हवन के बाद माता के भक्त कन्याओं का दैवीय रूप में पूजन करते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को भी मंदिर में मेले सा माहौल रहता है। मंदिर गर्भगृह से सटे करीब 18 फुट गहरे प्राकृतिक अमृत जलकुंड के ऊपर एक हरे भरे वट वृक्ष की खुली जड़ें जलकुंड के पानी को नमन करती नजर आती हैं। पिछले करीब पौने दौ सौ साल से वट वृक्ष का आकार जस का तस बना हुआ है। मंदिर व्यवस्थापक जगदीश सांखला ने बताया कि उद्यापन के लिए बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर परिसर में धर्मशाला है जहां केवल परिवार सहित आने वाले श्रद्धालुओं को ठहरने की नि:शुल्क सुविधा है।
माता को सिर्फ गुड़ और चना की प्रसादी चढ़ाई जाती है। सांखला ने बताया कि संतोषी माता की देश भर में एकमात्र प्रगट मूर्ति होने के कारण लोगों की आस्था है। मंदिर में माता के चरण दर्शन हैं। मंदिर विकास के लिए किसी तरह का कोई चंदा नहीं लिया जाता है और ना ही माता की चौकी लगाई जाती है।