इसलिए बना सिस्टम
झारखण्ड-बिहार बॉर्डर पर ऊपरी और निचले वायुमण्डल की हवाओं में अंतर होने से सर्कुलेशन पैदा हो गया। हवा चक्र के रूप में घूमने लगी। इसके बाद लॉ प्रेशर एरिया वर्टिकल वायुमण्डल में ऊपर तक बढ़ा जो 6 से 7 किलोमीटर तक पहुंच गया। मानसून के समय पूरे देश में नमी मौजूद रहती है, इसलिए यहां भी सिस्टम को नमी मिल गई और यह सिस्टम डीप डिप्रेशन में बदल गया। यहां हवा की गति 50 से 60 किमी प्रति घंटा थी। मानसून की ट्रफ लाइन बंगाल की खाड़ी से लेकर झारखण्ड, मध्यप्रदेश होते हुए जैसलमेर तक थी। यह डीप डिप्रेशन इस ट्रफ लाइन के सहारे जैसलमेर तक पहुंचा।जमीन पर कम पड़ जाती है ताकत
सामान्यत: जमीन पर लॉ प्रेशर एरिया ताकतवर होकर डीप डिप्रेशन तक ही पहुंच पाता है। समुद्र के भीतर होने पर यह लगातार ताकतवर होता रहता है। जमीन पर आने से किसी भी सिस्टम की ताकत कम पड़ जाती है।साइक्लोनिक सर्कुलेशन का यह रहता है क्रम
सिस्टम- हवा की गति1 लॉ प्रेशर एरिया- 10 से 15 किमी प्रति घंटा
2 वेल मार्क लॉ प्रेशर एरिया- 20 से 25 किमी प्रति घंटा
3 डिप्रेशन- 32 से 51 किमी प्रति घंटा
4 डीप डिप्रेशन- 52 से 61 किमी प्रति घंटा
5 साइक्लोनिक स्टॉर्म- 62 से 87 किमी प्रति घंटा
6 सीवियर साइक्लोनिक स्टॉर्म- 88 से 117 किमी प्रति घंटा
7 वेरी सीवियर साइक्लोनिक स्टॉर्म- 118 से 165 किमी प्रति घंटा
8 एक्सट्रीमली सीवियर साइक्लोनिक स्टॉर्म- 166 से 221 किमी प्रति घंटा
9 सुपर साइक्लोनिक स्टॉर्म- 222 किमी प्रति घंटा से ऊपर