प्रार्थी सुमेर शर्मा ने कोर्ट में बताया कि उसके पास पीड़िता की ओर से उपलब्ध करवाए गए रिकॉर्डिंग, विडियो तथा फोटोग्राफ्स हैं, जो कोर्ट के मार्फत अनुसंधान के लिए प्रस्तुत करना चाहता है, ताकि उक्त विडियो व फोटोग्राफ्स के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ ना हो सके। प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए पीड़िता के अधिवक्ता सुनील भंवरिया ने प्रार्थी के वीडियो और दस्तावेज को कूटरचित बताते हुए कोर्ट में कहा कि परिवादिया महिला है और उसकी एक निजता और शील है। उसकी बिना अनुमति के गोपनीय संसूचना को कोई भी प्रकट नहीं कर सकता जब तक कि किसी को अधिकृत नहीं किया जाता।
कोर्ट ने साक्षी बनने और सबूत पेश किए जाने के प्रार्थना पत्र को अस्वीकार करते हुए 14 पेज के आदेश में लिखा कि प्रार्थी तथा परिवादिया के मध्य अधिवक्ता-पक्षकार के सम्बन्ध थे, पीड़िता की ओर से इसे समाप्त कर दिए जाने के पश्चात भी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 के तहत पक्षकार को अपने व अपने अधिवक्ता के मध्य हुये सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुरक्षित और संरक्षित रखे जाने का पूर्ण अधिकार है।
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