सेना की 27 राजपूत राइफल्स के वीर शहीद भंवर सिंह का जिक्रकरते ही बुजुर्ग माता-पिता की भी आखें नम हो जाती हैं। वे कहते हैं कि जिंदगी से वह समय भले ही अब पीछे छूट गया है, लेकिन बेटे को याद कर हम गौरवान्वित महसूस करते हैं। शहीद भंवर सिंह ( Martyr Bhanwar Singh ) के 6 भाई एवं एक बहन हैं।
तब पैकेज मिला, अब भूल गए
शहीद के भाई करण सिंह इंदा ने बताया कि राज्य व केन्द्र सरकार की ओर से शहीद पैकेज मिला था। बाद में राजस्थान पत्रिका की तरफ से 50 हजार रुपए की सहायता राशि मिली। शहीद के नाम बीकानेर में एक मुरब्बा आवंटित हुआ था। उनकी शहादत को नमन करने के कुछ दिन तक तो जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी आते थे, लेकिन धीरे-धीरे भूल गए। अब तो शहीद परिवार के छोटे-बड़े कार्यों पर भी ध्यान नहीं देते हैं।
रोज जूझना पड़ता है अंधेरे से, न पंप मिला न एजेंसी
वर्तमान में वीरांगना जहां रहती हैं, वहां विद्युत कनेक्शन नहीं है। शहीद के नाम से पेट्रोल पंप एवं गैस एजेंसी आवंटन के लिए प्रयास किए थे लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ। थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया। शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है। पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है।
वर्तमान में वीरांगना जहां रहती हैं, वहां विद्युत कनेक्शन नहीं है। शहीद के नाम से पेट्रोल पंप एवं गैस एजेंसी आवंटन के लिए प्रयास किए थे लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ। थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया। शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है। पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है।