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जोधपुर ने जीत ली विटिलिगो की जंग, देश-दुनिया को दी कारगर तकनीक

World Vitiligo Day Special : ‘जोधपुर तकनीक’ नाम की रिसर्च से हो रहा है विटिलिगो का इलाज

जोधपुरJun 24, 2018 / 11:58 pm

Kanaram Mundiyar

जोधपुर ने जीत ली विटिलिगो की जंग, देश-दुनिया को दी कारगर तकनीक

-जोधपुर की बेटी लंदन निवासी नीनू गलोत दुनिया भर में चला रही है अनूठी मुहिम
-वैद्य गोपालनारायण शर्मा ने योग-प्राणायाम से भी जीती जंग
के. आर. मुण्डियार

बासनी (जोधपुर).
शरीर में ‘ऑटो इम्यूनिटी डिसऑनर’ से होने वाली विटिलिगो (सफेद कोढ़) बीमारी के इलाज के लिए जोधपुर में इजाद रिसर्च ‘जोधपुर तकनीकÓ देश-दुनिया में कारगर साबित हो रही है। कुछ दशक पहले तक लोग अज्ञानता व भ्रांतियों के कारण इस बीमारी से घबराते थे और हेय-घृणा से देखते थे, लेकिन अब सफल इलाज हो रहा है। दुनिया भर में 1 से 2 प्रतिशत लोग इससे पीडि़त हैं, लेकिन कारगर इलाज होने और जागरूकता बढऩे से अब विटिलिगो की जंग जीती जा रही है।

देश से लेकर सात समुंदर पार इस बीमारी की जंग जीतने के लिए जोधपुर का बड़ा योगदान है। जोधपुर के राजकीय मथुरादास माथुर अस्पताल के वरिष्ठ आचार्य डॉ. दिलीप कच्छावाहा ने वर्ष 2003 में विटिलिगो बीमारी में इलाज के लिए स्कीन सर्जरी की ‘जोधपुर तकनीक’ को इजाद किया था। वर्ष 2008 में जोधपुर की यह रिचर्स एसोसिएशन क्यूटिनयस सर्जन ऑफ इण्डिया की रेफरेंस पुस्तकों में प्रकाशित की गई। इसके बाद देश-दुनिया की हैल्थ पुस्तकों में जोधपुर तकनीक की रिसर्च छा गई। पिछले दिनों शंघाई (चीन) में अन्तरराष्ट्रीय कांफ्रेस में डर्मटो सर्जरी के जनक प्रो. लॉरेंस फील्ड ने जोधपुर तकनीक की खुलकर सराहना की और डॉ. कच्छावा को बधाई भी दी।

विटिलिगो के इलाज की कारगर तकनीक इजाद करने पर डॉ. दिलीप कच्छावाहा को वर्ष 2003 में राजस्थान सरकार ने योग्यता प्रमाण पत्र से नवाजा। इसके बाद 2005 में अमरीका से आउटस्टेडिंग लेक्चर अवार्ड मिला। वर्ष 2011 में डर्माकोन की ओर से एलएन सिन्हा अवार्ड, वर्ष 2016 में वीर दुर्गादास अवार्ड सहित कई अवार्ड मिल चुके हैं।

चर्म के अन्य इलाज में भी कारगर-
विटिलिगो के इलाज के लिए बनाई गई तकनीक के जरिए अब जोधपुर के चिकित्सक नई रिसर्च में जुटे हैं। चर्म से संबंधित अन्य बीमारियों में भी इस तकनीक के जरिए इलाज शुरू कर दिया गया है। यानि यूं कहें कि अब जोधपुर तकनीक न केवल विटिलिगो, बल्कि चर्म की अन्य बीमारियों में भी कारगर साबित हो रही है।

क्या है विटिलिगो-
डॉ. दिलीप कच्छावाहा कहते हैं कि विटिलिगो शरीर में ऑटो इम्यूनिटी डिसऑनर होने से होता है। शरीर अपने ही मेलेनोसाइट्स को नष्ट कर देते हैं। जिससे स्कीन का रंग बनता है। मेलेनोसाइट्स नष्ट हो जाने से स्कीन का रंग बिगड़ जाता है। लोगों में भ्रांतियां हैं कि यह छूने से आगे बढ़ जाती है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। यह छूत की बीमारी नहीं है। यह केवल सुन्दर दिखने से जुड़ी विकृति ही है। किसी भी तरह के खाने में गड़बड़ी के कारण भी यह बीमारी नहीं होती। इससे प्रभावित व्यक्ति को तनावमुक्त रहना चाहिए और अच्छे चर्म रोग विशेषज्ञ से ही पूरा इलाज लेना चाहिए। इसका कारगर इलाज होता है।

योग-प्राणायाम से जीत ली जंग : गोपाल नारायण शर्मा
‘मेरे शरीर पर सफेद कोढ़ (विटिलिगो) के दाग होने के कारण बचपन में लोग मुझसे घृणा करते थे। हेय दृष्टि से देखते थे। इसको लेकर मैं काफी विचलित होता था। उम्र के साथ समझ बढ़ी तो मैंने आयुर्वेद इलाज के साथ खुद को संभाला। इस पहचान को स्वीकार किया और तनाव छोड़कर योग-प्राणायाम का सहारा लिया। आज मैं स्वस्थ हूं और मैंने इस बीमारी पर नियंत्रण कर लिया।’
बीमारी की जंग को जीतने की यह जुबानी दास्तान है, डॉ. गोपाल नारायण शर्मा की। जो पिछले 47 साल से विटिलिगो प्रभावित है, लेकिन जब वे आयुर्वेद विभाग की सरकारी सेवा में आए तब से योग-प्राणायाम का सहारा लेते हुए इन्होंने विटिलिगो को न केवल शहीर के अन्य भागों पर बढऩे से रोक दिया, बल्कि इसको काफी कम भी कर दिया। शर्मा 27 साल से बिलाड़ा तहसील के राजकीय आयुर्वेद औषधालय में वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी है। वे दाग छिपाने की बजाय इस पहचान को स्वीकार करते हुए औरों को भी प्रेरणा दे रहे हैं। शर्मा ने कहा कि ‘पांच साल की उम्र में सफेद दाग उभरे जो हाथों व पैरों पर काफी बढ़ गए। स्कूली शिक्षा पूरी होने तक ये दाग मुंह और गर्दन तक आ गए। लेकिन मैं शुरू से ही एक्टिविटी में आगे रहता था, इसलिए यह बीमारी उन पर हावी नहीं हुई। कई लोग इस बीमारी को छिपाते हैं, लेकिन मैंने इसको सभी को दिखाया और लोगों की इस भ्रांति को भी दूर किया कि यह छूत की बीमारी भी नहीं है।

‘ईश्वर के दिए दाग अच्छे है’ : नीनू गलोत
यह है जोधपुर की बेटी फिटनेस मॉडल व इन्टरप्रिन्योर नीनू गलोत, जो कई सालों से लंदन में रह रही है। नीनू को 11 साल की उम्र में विटिलिगो हुआ। 14 साल तो इलाज करवाती रही और हाथों पर दास्ताने पहनकर दाग छिपाती थी। बाद में उसने अपनी सोच बदली और दुनिया भर में इस पहचान के साथ इससे पीडि़तों के लिए प्रेरणा बन गई। उसने फैशन-फिटनेस मॉडलिंग में सफेद धब्बों का प्रदर्शन किया। वह कहती है कि तनाव रहित जिन्दगी जीने से विटिलिगों का प्रभाव स्वत: ही कम हो जाता है। नीनू ने जोधपुर, जैसलमेर, मुम्बई सहित दुनिया के कई शहरों से विटिलिगो पीडि़तों पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है। जिसमें बताया गया है कि विटिलिगो कोई छूत की बीमारी नहीं है, फिर भी इससे पीडि़तों को समाज में किस तरह भेदभाव झेलना पड़ रहा है। नीनू मुम्बई, नाइजीरिया, लंदन सहित कई शहरों में फैशन शो में भी भाग लेकर अनूठी मिसाल कायम कर रही है। वह कहती है ‘ईश्वर के दिए दाग अच्छे हैं और यही उनकी पहचान है।’
 

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