पिछले दस दिन में घर और श्मशान के बीच इतने फेरे हो गए कि अब तो आंखें पथरा गईं…दिल पत्थर-सा हो गया…कमबख्त रोना भी नहीं आ रहा…आंसू तक सूख गए। भुंगरा गांव में गैस सिलेण्डर त्रासदी ने सांगसिंह की जिंदगी में ऐसा तूफान ला दिया कि सपने पत्तों के ढेर की तरह उजड़ गए।
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जयपुर में हॉर्स राइडिंग का काम करने वाले सांगसिंह ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि घोडे के रफ्तार की तरह जिंदगी इतनी तेजी से घनघोर अंधेरे में चली जाएगी। सांगसिंह के छोटे भाई सुरेन्द्रसिंह की शादी 8 दिसम्बर को थी। बारात रवानगी के समय भुंगरा गांव में काल का ऐसा पगफेरा हुआ कि अब तक 35 जिंदगियां जा चुकी है। हादसे के बाद से दिलासा देने हर रोज अनगिनत लोग आ रहे हैं, लेकिन सांगसिंह सिर पर रखे कपड़े से एकटक देखता भर है। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि प्रकृति ने उसके साथ ऐसा क्यों किया।
11 दिन में 25 अंतिम संस्कार
भुंगरा गांव में पिछले 11 दिन में 25 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। ग्रामीणों के लिए जिंदगी का यह सबसे भयावह मंजर है। गांव के लोग भी अत्यंत व्यथित है। हादसे में अब तक 35 मौतें हो चुकी हैं। इनमें 10 मृतक अन्य गांवों के हैं।
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घर अब घर नहीं रहा, दीवारें काटने को दौड़ रहीं
मेरिया रामसिंह नगर गांव का 13 वर्षीय रावलसिंह। उसके लिए घर अब घर नहीं रहा। घर की दीवारें काटने को दौड़ती है। घर में न रुठने वाला और न ही मनाने वाला। अब छोटे भाई लोकेन्द्र के साथ खेलना-कूदना भी कभी नहीं होगा। उसकी जिंदगी में न मां की डांट-फटकार होगी और न ही दुलार। रावल के पिता का पांच साल पहले देहांत हो गया था। गैस त्रासदी में मां जस्सूकंवर और छोटा भाई लोकेन्द्र उसे हमेशा के लिए छोड़ गए। अब रावल घर में अकेला रह गया। खेलने-कूदने की उम्र में उसकी जिंदगी में ऐसा तूफान आया कि सब कुछ बदल गया।