जोधपुर . केंद्र सरकार ने सरस्वती नदी के अस्तित्व पर मोहर लगा दी है। अब यह राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वे सरस्वती नदी के चैनल्स को फिर से रिचार्ज करें। वेदों में उल्लेखित सरस्वती नदी का ६००० से लेकर ४००० साल पहले तक अस्तित्व था। इसका पैलियोचैनल हरियाणा के आदीबद्री से लेकर गुजरात के धोलावीरा तक मिला है। यह नदी हिमालय से निकलती थी। इसकी राजस्थान में कई वितरिकाएं थीं।
बेंगलूरु स्थित जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर केएस वाल्डिया के नेतृत्व में गठित कमेटी की रिपोर्ट को सरकार ने सार्वजनिक किया है। आदीबद्री से लेकर धोलावीरा तक बह रहा पेलियोचैनल वास्तव में पुराणों में बहने वाली सरस्वती नदी है। जोधपुर आईं केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने कहा कि एक साल से यह रिपोर्ट सार्वजनिक है। किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है। अब सरकार प्रामाणिक घोषित कर सरस्वती नदी के अस्तित्व पर मोहर लगाती है।
सरस्वती के किनारे थी कालीबंगा सभ्यता
सरस्वती नदी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात के अलावा सिंधु नदी के समानांतर पाकिस्तान में भी बहती थी। हनुमानगढ़ में ३००० ईशा पूर्व विकसित हुई कालीबंगा सभ्यता सरस्वती के किनारे फली-फूली थी। उस समय कांस्य युग था। वेदों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी। मारवाड़ में बहने वाली लूणी, जोजड़ी, सूकड़ी, बांडी नदियों को पानी की आपूर्ति भी सरस्वती से होती थी। सरस्वती का सबसे बड़ा प्रमाण बीकानेर शहर का उत्तरी हिस्सा है, जहां वर्षों से खनन के बावजूद अब तक बजरी कम नहीं हुई है।
सरस्वती नदी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात के अलावा सिंधु नदी के समानांतर पाकिस्तान में भी बहती थी। हनुमानगढ़ में ३००० ईशा पूर्व विकसित हुई कालीबंगा सभ्यता सरस्वती के किनारे फली-फूली थी। उस समय कांस्य युग था। वेदों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी। मारवाड़ में बहने वाली लूणी, जोजड़ी, सूकड़ी, बांडी नदियों को पानी की आपूर्ति भी सरस्वती से होती थी। सरस्वती का सबसे बड़ा प्रमाण बीकानेर शहर का उत्तरी हिस्सा है, जहां वर्षों से खनन के बावजूद अब तक बजरी कम नहीं हुई है।
दिल्ली-हरिद्वार उभार के कारण जमीन में धंसी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भू-गर्भ विभागाध्यक्ष प्रोफेसर केएल श्रीवास्तव ने सरस्वती नदी पर अनुसंधान किया है। उन्होंने कहा कि जमीन के नीचे भारतीय प्लेट के बीच में दिल्ली-हरिद्वार का उभार होने लगा था। इससे सरस्वती नदी जमीन में बैठती चली गई। हिमाचल से उसको मिलने वाला पानी सिंधु नदी को मिलने लगा। कई सालों तक चली इस प्रक्रिया के कारण सरस्वती जमीन में समा गई। इसमें पानी की आपूर्ति भले ही नहीं हो रही हो, लेकिन इसके चैनल और सब चैनल आज भी विद्यमान हैं।
अंग्रेज इंजीनियर ने ढूंढा चैनल
सरस्वती नदी की खोज के बारे में पहली कल्पना अंग्रेज इंजीनियर सीएफ ओल्डहैम ने १८९३ में की थी, जब वे हनुमानगढ़ के पास बरसाती नदी घग्घर के पाट से गुजर रहे थे। उनका घोड़ा कई बार जमीन में अटक गया था, जिसके कारण ओल्डहैम के दिमाग में यहां पानी के चैनल का ख्याल आया।
सरस्वती नदी की खोज के बारे में पहली कल्पना अंग्रेज इंजीनियर सीएफ ओल्डहैम ने १८९३ में की थी, जब वे हनुमानगढ़ के पास बरसाती नदी घग्घर के पाट से गुजर रहे थे। उनका घोड़ा कई बार जमीन में अटक गया था, जिसके कारण ओल्डहैम के दिमाग में यहां पानी के चैनल का ख्याल आया।
यह होगा फायदा सरस्वती नदी के चैनल पर कुआं खोदने से जमीन से थोड़ा नीचे पानी मिल जाएगा। इसका उपयोग सिंचाई में होगा। मानसून के दिनों में बाढ़ आने पर सरस्वती के चैनल से कनेक्ट कर नदी को अण्डरग्राउण्ड रिचार्ज किया जा सकता है।
प्रो. केएल श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, भू-गर्भ विज्ञान, जयनारायण व्यास विवि, जोधपुर
प्रो. केएल श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, भू-गर्भ विज्ञान, जयनारायण व्यास विवि, जोधपुर
हमने नदी ढूंढ दी, अब राज्य सरकारें जानें
सरस्वती नदी थी यह प्रामाणिक हो गया है। आदीब्रदी से लेकर धोलावीरा तक पेलियोचैनल मिला है। अब राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वे नदी के चैनल को फिर से रिचार्ज कर इसका उपयोग करें।
सरस्वती नदी थी यह प्रामाणिक हो गया है। आदीब्रदी से लेकर धोलावीरा तक पेलियोचैनल मिला है। अब राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वे नदी के चैनल को फिर से रिचार्ज कर इसका उपयोग करें।
उमा भारती, केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री