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जोधपुर

वरदान साबित होगी प्रस्तावित घग्घर-यमुना-जोजरी-लूणी- साबरमती नदी संगम परियोजना

बिलाड़ा (जोधपुर). भूगोलवेत्ता प्रो. नरपत सिंह राठौड़ द्वारा तैयार की गई प्रस्तावित घग्घर-यमुना-जोजरी-लूणी- साबरमती नदी संगम परियोजना को जल शक्ति मंत्रालय व्यवहारिक रूप दे दे तो हर दूसरे-तीसरे वर्ष पडऩे वाले सूखे और अकाल से इस मरू प्रदेश को निजात मिल सकती है।
 
 
 

जोधपुरOct 02, 2020 / 01:25 am

pawan pareek

Ghaggar-Yamuna-Jojari-Luni-Sabarmati River Sangam Project

बिलाड़ा के जसवंत सागर बांध का विहंगम दृश्य।

कल्याण सिंह राजपुरोहित
बिलाड़ा (जोधपुर). भूगोलवेत्ता प्रो. नरपत सिंह राठौड़ द्वारा तैयार की गई प्रस्तावित घग्घर-यमुना-जोजरी-लूणी- साबरमती नदी संगम परियोजना को जल शक्ति मंत्रालय व्यवहारिक रूप दे दे तो हर दूसरे-तीसरे वर्ष पडऩे वाले सूखे और अकाल से इस मरू प्रदेश को निजात मिल सकती है। साथ ही भूमिगत जल का कम होना, पेयजल संकट और चरागाह में कमी का स्थायी हल हो सकता है।
इस क्षेत्र के विकास के लिए हिमाचल एवं उत्तराखंड से निकलने वाली नदियों के व्यर्थ बहने वाले पानी को कच्ची-पक्की नहरों से जोजरी- लूणी नदी में छोड़कर न केवल मरु प्रदेश बल्कि गुजरात क्षेत्र को भी निहाल किया जा सकता है।

भारतीय किसान संघ के प्रांत प्रचारक तुलछाराम सींवर, बिलाड़ा क्षेत्र के संभाग जैविक प्रमुख गायड़ राम ढाका के अथक प्रयासों से सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय उदयपुर के आचार्य एवं प्रो.राठौड़ की आेर से तैयार इस प्रस्तावित परियोजना को केन्द्र सरकार ने नदियों से नदियां जोड़े जाने वाली प्रोजेक्ट समिति को सौंप दिया है। भूगोलवेत्ता का मानना है कि इस परियोजना को मरूगंगा का भी रूप दिया जा सकता है।
राठौड़ के अनुसार हिमालय से निकलने वाली नदियां वर्षा काल में बाढ़ के रूप में उपलब्ध पानी को घग्घर नदी में छोड़कर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से एक कच्ची नहर का निर्माण कर हजारों क्यूबिक मीटर पानी व्यर्थ में पाकिस्तान में बहकर जाने वाले इस बरसाती पानी को नापासर, देशनोक, चाडी, डावरा, जोधपुर या पुलु, सरदारशहर, तालछापर, डेगाना, नागौर, आसोप, भोपालगढ़ , जोधपुर या नागौर से मेड़ता के निकट जोजरी नदी में हिमालय का पानी लाया जा सकता है। जोधपुर या मेड़ता के निकट जोजरी (मीठड़ी) बरसाती नदी में छोड़ा गया हिमालय के पानी को खेजड़ली खुर्द, सालावास के पास लूणी नदी में भी डाला जा सकता है।

यमुना भी करती है निहाल

भूगोलवेत्ता राठौड़ ने यमुना नदी पर बने तेजावाला फीडर से वर्षा के दौरान छोड़े जाने वाली अतिरिक्त जल राशि को हरियाणा में सोनीपत के निकट कच्ची नहर बनाकर रोहतक, महेंद्रगढ़ से पिलानी, झुंझुनू, मंडवा ,मुकुंदगढ़ ,सीकर, डीडवाना, डेगाना से निकालकर नागौर जिले के मेड़ता के समीप निकलने वाली मीठड़ी (जोजरी) नदी में छोड़ा जा सकता है। यमुना का यह जल मीठड़ी नदी में प्राकृतिक रूप से बहता हुआ घघराना ,घोड़ावट, पीपाड़ तथा बीसलपुर के नजदीक जोधपुर से 25 किलोमीटर स्थित खेजड़ली खुर्द के निकट लूनी नदी में पहुंच जाएगा।

इस नदी में छोड़ा गया घग्गर – यमुना जल प्राकृतिक रूप से बहता हुआ समदड़ी, बालोतरा, सिणधरी, धोरीमन्ना तथा गुड़ा होता हुआ सांचौर तक पहुंचेगा।

बारह मास भरा रहेगा जसवंत सागर बांध

परियोजना में सुझाए गए जल राशि के मार्ग के अनुसार घग्घर एवं यमुना का पानी मेड़ता से होकर आगे बढ़ता हुआ दर्शाया गया है। इसी मेड़ता से कच्ची नहर के जरिए यह जल राशि मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जसनगर के निकट नदी में छोड़ दिया जाए तो यह पानी कालाउना, झांक होते हुए जोधपुर जिले के सबसे बड़े बांध जसवंत सागर को बारह महीने भरा रख सकता है। जिससे 50-50 कोस की परिधि में किसानों को सीधा फायदा मिलेगा।

नहीं रहेगा अकाल, हो जाएगा सुकाल
प्रोजेक्ट समिति को सौंपी गई इस परियोजना के माध्यम से भूगोलवेत्ता राठौड़ ने यह उम्मीद जताई कि राज्य या केंद्र सरकार इस योजना को व्यवहारिक रूप दे तो राष्ट्रीय स्तर पर सिंचित क्षेत्र एवं खाद्यान्नों में 25 प्रतिशत की वृद्धि होगी। पश्चिमी राजस्थान एवं उत्तरी गुजरात का गोवंश बचाया जा सकता है। चरागाह भूमि में वृद्धि, सूखे और अकाल से स्थाई राहत, पशुपालन से दूध,घी, उन, मांस ,गोबर खाद का उत्पादन के अलावा फल- फूल एवं सब्जियों की खेती बढ़ेगी। रेगिस्तान विस्तार रुकेगा, डार्कजोन व्हाइट जोन में बदलेंगे। सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होगी और ऊर्जा क्षेत्र में पानी के पहुंचने से क्षेत्र में नए उद्योग की स्थापना और रोजगार के अवसर निकलेंगे।

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