इस झाड़ी को वैज्ञानिकों ने 5 मीटर तक खोदा, लेकिन इसकी जड़ और भी गहरी थी। उस समय संसाधन नहीं होने से अधिक खुदाई नहीं की जा सकी। काजरी के तत्कालीन वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार और विनोद कुमार ने इस झाड़ी की गहराई 8 से 10 मीटर बताते हुए एक रिसर्च प्रकाशित किया।
पानी के बड़ा स्रोत का दावा
इस रिसर्च में इस क्षेत्र में सरस्वती नदी की भूमिगत धारा का प्रवाह होने की संभावना जताई थी। वैज्ञानिकों ने अनुसार यह झाड़ी वहीं पाई जाती है जहां पानी का कोई बड़ा स्रोत हो। यह झाड़ी जमीन पर आधा मीटर भी मुश्किल से निकलती, लेकिन जड़ पानी की तलाश में 10 मीटर तक जाती है।तीन संभावना व्यक्त करती है घटना
सेवानिवृत्त प्रोफेसर और भूगोलवेत्ता प्रो नरपत सिंह राठौड़ ने मोहनगढ़ की घटना को तीन संभावनाओं में बांटा है।- * ट्यूबवैल खुदाई में निकली जल धारा की घटना तीन संभावना को सिद्ध करती है। खुदाई में निकली मिट्टी की आयु टर्शियरी काल की होने के साथ जल में सोडियम क्लोराइड मात्रा प्रति 1000 ग्राम में 27 ग्राम से ज्यादा और 77 प्रतिशत से ज्यादा लवण की मात्रा है, तो निश्चित रूप से यह टेथिस सागर का ही भाग है।
- * प्राचीन सरस्वती नदी जो यहां से बहती थी उसी का सुरक्षित बचा हुआ जल भंडार हो सकता है।
- * भूगर्भ में अथाह जल का भंडार है जो ट्यूबवैल के खोदने से निकला है। यहां बलुआ एवं चूना पथर के जमावों में जल के भंडार मिलते हैं। शायद जमीन के अंदर पानी बह रहा है।