जोधपुर

ताजमहल के लिए राजस्थान के मजदूरों ने बहाया था पसीना

इतिहास के झरोखे से : मुग़ल शासक शाहजहां ने ताजमहल निर्माण के लिए आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह से मांगे थे मजदूर व छकड़ा गाडिय़ां
 

जोधपुरOct 23, 2017 / 10:00 pm

Kanaram Mundiyar

देश की ऐतिहासिक विरासत ताजमहल को लेकर इन दिनों राजनीतिक गलियारों से लेकर देश-दुनिया तक हलचल मची हुई है। राजनीतिक हलचल के बीच हमें इतिहास के पन्ने भी पलटने चाहिए और जानना चाहिए कि आखिर ताजमहल का निर्माण कैसे और किन हालातों में हुआ ?

के. आर. मुण्डियार.
बासनी(जोधपुर).

देश की ऐतिहासिक विरासत ताजमहल को लेकर इन दिनों राजनीतिक गलियारों से लेकर देश-दुनिया तक हलचल मची हुई है। राजनीतिक हलचल के बीच हमें इतिहास के पन्ने भी पलटने चाहिए और जानना चाहिए कि आखिर ताजमहल का निर्माण कैसे और किन हालातों में हुआ ?
विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल आगरा के ताजमहल के निर्माण में राजस्थान के मजदूरों का खून-पसीना बहा था। मुगलों के शासन के दौरान सत्रहवीं सदी में अगर राजपूताना से मजदूर व छकड़े (बैलगाडिय़ां) नहीं भेजे जाते तो शायद ही ताजमहल की अनुपम कृति देखने को मिलती।

मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने अधीन आमेर (जयपुर) जागीर के मिर्जा राजा जयसिंह को फरमान/ खत लिखे थे। इन शाही फरमानों और खतों से पता चलता है कि ताजमहल के निर्माण कार्य में संकट आने पर शाहजहां ने मिर्जा राजा जयसिंह से मजदूर व छकड़े मंगवाए थे।

ऐसे फरमान राजस्थान राज्य अभिलेखागार निदेशालय बीकानेरअजमेर में संरक्षित हैं। इन फरमानों के अनुसार शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में राजधानी आगरा (तब नाम अकबराबाद था) में ताजमहल के निर्माण में राजस्थान के मकराना (नागौर), आमेर (जयपुर), राजनगर (राजसमंद) से बड़े स्तर पर संगमरमर पत्थर मंगवाए थे।

आमेर से बुलवाए थे मजदूर
शाहजहां ने 21 जनवरी 1632, 21 जून 1637 तथा 9 सितम्बर 1632 को जारी फरमानों में से एक में मिर्जा राजा जयसिंह से कहा कि आमेर की नई खान से मुकलशाह को संगमरमर निकालने भेजा है। मुकलशाह जितने भी पत्थर काटने वाले मजदूर व किराये की गाडिय़ां मांगे, उसे उपलब्ध कराएं। मजदूरी व गाडिय़ों के किराये की रकम बादशाह के कोषाधिकारी कोष पहुंचा देगा।
दूसरे फरमान में शाहजहां ने लिखा कि राजधानी आगरा में संगमरमर लाने के लिए बहुत से छकड़ों व गाडिय़ों की आवश्यकता है। इस संबंध में आपको पहले भी आदेश पारित हुए हैं। इसके लिए सैयद इलाहदाद को गाडिय़ां, मजदूर उपलब्ध कराएं और सबका हिसाब करके भेज दें।

तारीफ कर मांगते थे मदद
शाहजहां की ओर से मिर्जा राजा जयसिंह के नाम जारी फरमान में उनकी तारीफों के पुल भी बांधे गए। फरमानों की शुरुआत में मिर्जा राजा जयसिंह को अपने समकक्ष सरदारों में श्रेष्ठ, स्वामिभक्त, निष्कपट, निस्वार्थ, एहसान व कृपा पाने योग्य जैसे शब्दों से सम्बोधित किया गया। इन फरमानों पर शाही मुहर भी लगी है।

नमक के लिए परगने छीनने की धौंस-
एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर में मुगलों के शासन के दौरान नमक उत्पादन के बावजूद प्रति वर्ष एक लाख रुपए का घाटा होता था। क्योंकि आमेर जागीर व मुअज्जमाबाद सहित अन्य परगनों में नमक उत्पादन हो रहा था। इन परगनों में नमक बनने से शासन नियंत्रित सांभर झील में नमक उत्पादन व आय प्रभावित हो गई। इसलिए 7 दिसम्बर 1643 के शाहजहां ने मिर्जा राजा जयसिंह को पत्र लिखकर आमेर व अन्य परगनों में नमक नहीं बनाने और नमक के कारखाने हटाने के फरमान जारी किए थे। इस फरमान में शाहजहां ने जयसिंह को चेतावनी दी कि फरमान की पालना नहीं हुई तो वह नमक बनाने वाले परगने आमेर की जागीर से स्थानान्तरित कर देंगे।

इनका कहना है-
ऐतिहासिक विरासत ताजमहल के निर्माण में राजस्थान का बड़ा योगदान है। मुगलकालीन फारसी फरमानों में इस आशय की जानकारी लिखी है। जिससे स्पष्ट होता है कि मुगल शासकों ने राजपूताना के राजाओं पर दबाव बनाकर मजदूर व अन्य सामग्री मंगवाई जाती थी। राजपूताना के मजदूरों की श्रम शक्ति से ही ताजमहल का निर्माण हुआ। राजस्थान राज्य अभिलेखागार निदेशालय की बीकानेर व अजमेर स्थित संचय शाला में मुगलकालीन फारसी फरमानों के दस्तावेज संरक्षित हैं।
-बसंतसिंह सोलंकी, पुरालेख अधिकारी, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, जोधपुर

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