जोधपुर जिला किसी मायने में पीछे नहीं है। यहां के किसान अपने खेतों में हर तरह के संभव प्रयोग कर रहे हैं और किसानों की खुशी देखते बनती है। यह बहुतों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है कि जोधपुर में गोंद की उपज ली जा रही है। गोंद तैयार करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
स्वास्थ्य के लिए अत्यंत गुणकारी गोंद का एक आदर्श खेत जोधपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर दईकड़ा गांव में है। जहां किसान मोहनराम सारण ने अपने लगभग आठ बीघा के खेत के चारों तरफ कुम्हट के पेड़ लगा रखे हैं। पेड़ भी कोई एक-दो नहीं, 100 से ज्यादा पेड़, जो पिछले करीब 10 वर्ष में तैयार हुए हैं और अब गर्मी के तीन महीनों में भरपूर गोंद देते हैं।
मध्यम आकार का एक पेड़ हर साल आधे किलोग्राम से ज्यादा गोंद दे रहा है। गोंद की गुणवत्ता ऐसी है कि उसे 1500 रुपए प्रति किलोग्राम का भाव मिल जा रहा है। कम खर्च पूरा मुनाफा
खेत पर मेड़ के रूप में जब इलाके के लोग बबूल लगा रहे थे, तब मोहनराम के पिता धन्नाराम ने कुम्हट-गोंद के पेड़ लगाए थे। धीरे-धीरे पेड़ जब बड़े हुए, तब मोहनराम को उनका महत्व समझ में आया।
उन्होंने 2013 में काजरी की मदद ली। काजरी से पता चला कि वहां गम उत्प्रेरक दवा मिलती है। यह दवा कुम्हट के एक पेड़ को 4 एमएल की मात्रा में दी जाती है और उसके फलस्वरूप पेड़ की डालों पर जगह-जगह से गोंद आना शुरू होता है। चार एमएल दवा की कीमत 10 रुपए है। एक पेड़ पर बामुश्किल 20 रुपए खर्च आता है और कमाई होती है 700 रुपए से ज्यादा।
नाइजीरियाई कुम्हट यह पौधा काफी मात्रा में जोधपुर के आसपास लगाया जा रहा है। मोहनराम ने भी इसके खूब पौधे लगाए हैं, ये 2 साल में स्वयं उपज देने लगते हैं, इसमें किसी तरह की दवा देने की जरूरत नहीं पड़ती। इस गोंद का रंग थोड़ा सफेद होता है और इसकी गोंद मोटे सेव के आकार में निकलती है। जितनी ज्यादा गर्मी होती है, उतनी ज्यादा फसल होती है।
गोंद की खेती का प्रचार मोहनराम के सफल प्रयोग को देखते हुए आसपास के किसानों ने 30-40 खेतों में कुम्हट के पौधे-पेड़ लगाए गए हैं। लोगों को आर्थिक लाभ हो रहा है। जैविक खेती
स्नातक किसान मोहनराम ने दो भैंस और एक गाय रखी है, जिसकी मदद से जैविक खेती कर रहे हैं। उर्वरक स्वयं तैयार करते हैं और अपने खेत में गेहूं, धान, कपास इत्यादि कई तरह की फसल अच्छी मात्रा में ले रहे हैं।
गोंद के फायदे आम तौर पर गोंद का इस्तेमाल मिठाई या लड्डू बनाने में होता है। यह बहुत गुणकारी है। पारंपरिक रूप से प्रसूताओं को गोंद के लड्डू खिलाए जाते हैं। इसके अलावा यह रक्त संचार सही करता है। स्फूर्ति की कमी को दूर करता है, नियमित सेवन से शरीर को ठंडक मिलती है।
काजरी ने पूरी मदद दो साल पहले हमारा नाबार्ड और ग्राम सेवा संस्थान से संपर्क हुआ और हम काजरी के संपर्क में आए और फिर काजरी से मदद लेकर गोंद की पैदावार शुरू की। इस साल गोंद से 75 हजार रुपए की कमाई हो चुकी है। हम ऑर्गेनिक नाइजीरियाई कुम्हट का भी विकास कर रहे हैं, जिससे एक साल बाद फसल मिलने लगेगी।
– मोहनराम सारण, किसान, दईकड़ा