जोधपुर

DRDO को मिली बड़ी सफलता, अब दुश्मन को नजर भी नहीं आएंगे हमारे टैंक, तोप और हथियार, जानिए कैसे

Jodhpur DRDO: रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर ने विकसित की कैमोफ्लेज टेक्नोलॉजी, जैसलमेर में टी-90 टैंक पर किया गया था सफल परीक्षण

जोधपुरOct 05, 2024 / 12:33 pm

Rakesh Mishra

Jodhpur DRDO: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की जोधपुर स्थित रक्षा प्रयोगशाला ने आर्मी के हथियारों और वाहनों के लिए कैमोफ्लेज टेक्नोलॉजी विकसित की है। इसमें विशेष तरह का पेंट और स्टीकर तैयार किए गए हैं। आर्टिलरी गन, टैंक, मिसाइल सिस्टम जैसे बड़े हथियारों पर कोटिंग और स्टीकर लगाने से ये वातावरण में एक तरह से छिप जाएंगे। दुश्मन का सैटेलाइट और ड्रोन व एयरक्राफ्ट के कैमरे हथियारों को ट्रेस नहीं कर पाएंगे। उन्हें छद्म वस्तुएं नजर आएंगी।
रक्षा प्रयोगशाला ने इसका परीक्षण जैसलमेर स्थित पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में टी-90 टैंक पर किया। टी-90 टैंक पर विशेष एल्गोरिदम की कोटिंग और स्टीकर लगाया गया। इस कैमोफ्लेज टेक्नोलॉजी ने हाई रेजोल्यूशन कैमरे के थर्मल व इन्फ्रा रेड सेंसर का धोखा दे दिया, जिससे टैंक, टैंक के रूप में नजर नहीं आकर किसी और वस्तु के रूप में नजर आया।

5 तरह के स्टीकर तैयार किए

रक्षा प्रयोगशाला ने विशेष एल्गोरिदम की सहायता से पांच सैन्य रंग शेड में बहु-स्पेक्ट्रल छलावरण स्टीकर तैयार किए हैं। इसमें रेत की तरह, वनस्पति के रंग, भूरे रंग, सफेद रंग और एक अन्य रंग का स्टीकर हैं। इन स्टीकर को टैंक अथवा आर्मी के अन्य सामान पर लगाने से यह एनआईआर और टीआईआर सेंसर के डिटेक्शन रेंज को कम करने में अत्यधिक प्रभावी हैं।

सैन्य अभियानों में मिलेगी मदद

गौरतलब है कि दुश्मन देश के सैटेलाइट, एरियन व्हीकल और ग्राउण्ड पर ऊंचाई पर कैमरे लगाकर सैन्य हथियारों की संख्या और उनके प्रकार को डिटेक्ट करके सामने वाले की क्षमता व स्थिति की सटीक जानकारी लेते रहते हैं। सैटेलाइट पर लगे थर्मल व इन्फ्रा रैड कैमरे विभिन्न वस्तुओं का सिग्नेचर लेते हैं। इससे सैन्य अभियानों में मदद मिलेगी।
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