मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित मंदिर में चामुंडा की प्रतिमा 558 साल पहले विक्रम संवत 1517 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित की थी। परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी अपनी इष्टदेवी स्वीकार किया था। जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते है। मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था का कारण यह भी है कि वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने अंचल का कवच पहना दिया था। किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरने के कारण चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया लेकिन मूर्ति अडिग रही।
शारदीय नवरात्रा की प्रतिपदा को 30 सितम्बर, 2008 में हुई मेहरानगढ़ दुखान्तिका में 216 लोग काल कवलित होने के बाद मंदिर में कुछ प्राचीन परम्पराओं में बदलाव किया गया है। आद्यशक्ति मां चामुंडा की स्तुति में कहा गया है कि जोधपुर के किले पर पंख फैलाने वाली माता तू ही हमारी रक्षक हैं। रियासतों के भारत गणराज्य में विलय से पहले मंदिर में नवरात्रा की प्रतिपदा को महिषासुर के प्रतीक भैंसे की बलि देने की परम्परा थी जो बंद की जा चुकी है। मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था। मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं। राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी।