मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार के प्रस्ताव पर जहाजरानी मंत्री गड़करी ने जालोर में प्रदेश का पहला आर्टिफिशियल इनलैंड पोर्ट बनाने पर सहमति जताई थी। इसके बाद जहाजरानी मंत्रालय के अधीन इनलैंड वाटरवेज अथोरिटी ऑफ इंडिया ने भारत सरकार के उपक्रम वाटर एंड पावर कंसलटेंसी सर्विसेज (वापकॉस) को प्री-फिजिब्लिटी रिपोर्ट बनाने का जिम्मा सौंपा था।
माना घाटे का सौदा वापकॉस ने परियोजना की इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न (आईआरआर) को नकारात्मक बताते हुए इसे घाटे का सौदा बताया। सुरक्षा एजेंसियों की आपत्ति व इलाके की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के कारण भी इसे व्यावहारिक नहीं माना गया।
इसलिए खींचे राज्य ने हाथ
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने केंद्र को कृत्रिम इनलैंड पोर्ट का प्रस्ताव भेजा था। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी यह पोर्ट बनाने का वादा किया। इधर, जल संसाधन विभाग ने परियोजना को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि इनलैंड वाटर-वे परिवहन विभाग का विषय है, लेकिन इस विभाग को परियोजना से अछूता रखा गया। इसके अलावा यह भी आपत्ति की गई कि परियोजना के रूट को नेशनल वाटर-वे घोषित किया गया है, जो राज्य सरकार को इसमें किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देता। इसके बाद राज्य सरकार ने लगभग 8 हजार करोड़ की इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
क्या थी परियोजना इस प्रोजेक्ट के तहत गुजरात के कच्छ के रण से नहर के जरिए पानी लाकर जालोर के भवातड़ा में पहला आर्टिफिशियल इनलैंड पोर्ट बनाया जाना था। लगभग ३६५ किलोमीटर लम्बी नहर में जहाज चलाने के लिए नेवीगेशन चैनल्स करीब 300 मीटर चौड़ी और 25 मीटर गहरी रखते हुए कृत्रिम बंदरगाह पर मालवाहक जहाजों की आवाजाही और नौ परिवहन के लिए जल मार्ग बनाया जाना था। गौरतलब है कि राजस्थान के पश्चिम-दक्षिण भूभाग से अरब सागर का सबसे निकटतम किनारा कांडला पोर्ट है। कांडला पोर्ट से जालोर की दूरी करीब 400 किलोमीटर है।
गड़करी का ड्रीम प्रोजेक्ट
जालोर में जहाज चलाने को केंद्रीय मंत्री गड़करी हमेशा अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताते रहे। वे जब भी राजस्थान आए या यहां की परियोजनाओं की बात हुई तो उन्होंने कहा कि कांडला से जालोर तक समुद्री पानी में जहाज चलाने की परियोजना से इलाके की सूरत बदल सकती है। दो साल पहले जोधपुर में रिंग रोड के शिलान्यास के दौरान भी उन्होंने परियोजना के जैसलमेर तक विस्तार तक की बात की थी।
सांसद कहिन… मैंने संसद के मौजूदा सत्र में यह मुद्दा उठाया तो बताया गया कि परियोजना को व्यावहारिक नहीं माना गया है, जबकि यह परियोजना पश्चिम राजस्थान के लिए अहम साबित हो सकती है। इस मुद्दे पर जहाजरानी मंत्री से परियोजना पर नए सिरे से अध्ययन करवाने और इसे मंजूर करवाने के लिए मिलूंगा। क्षेत्र की पेयजल समस्या के निदान के लिए भी प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण है। परियोजना में ही समुद्र के खारे पानी को अलवणीय बनाने और सोया जैसी फसलों के लिए भी काम में लेने का भी प्रस्ताव है। केंद्र के साथ राज्य सरकार को भी परियोजना पर पुनर्विचार करना चाहिए।
-राजेंद्र गहलोत, सांसद राज्यसभा