काजरी में इन दिनों आंवले के पेड़ों पर लताएं लटक रही हैं। यहां 275 पेड़ लगे हुए हैं, जिन पर 60 से लेकर 120 किलो तक फल लगे हैं। मानसून की अच्छी व लम्बी बारिश के कारण आंवले के फल का साइज भी इस बार बड़ा है। डेढ़ दशक पहले यहां आंवले की खेती नहीं होती थी, लेकिन काजरी के प्रयोग के बाद अब कई किसान खेतों में आंवले के पौधे लगाकर अच्छी उपज ले रहे हैं।
अक्टूबर में ही आ गए फल
जोधपुर में आंवले के फल सामान्यत: दिसम्बर से मार्च के दरम्यान आते हैं, लेकिन इस बार मानसून की अच्छी बारिश से इसके फल अक्टूबर के अंत में ही आना शुरू हो गए। नवम्बर में भी अच्छी खासी फसल आ गई थी।’काजरी ने लगाई 8 प्रकार की किस्में
काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. धीरज सिंह ने बताया कि संस्थान में आठ प्रमुख किस्में जिनमें फ्रांसिस, चकैया,एनए -7, आनन्द आंवला, एनए-10, कृष्णा, कंचन एवं बनारसी किस्म की फसलें उगाई हैं। इनकी खासियत है कि ये क्षारीयता एवं लवणीय भूमि को भी सहन कर लेते हैं। यह मरुस्थलीय जलवायु के अनुकूलित हो गया है। एक बार पौधा लगने के बाद हर वर्ष फल मिलते रहेंगे।आंवले का हर फल कीमत देगा
कृषि की नवीन तकनीकों, उन्नत किस्मों से फलों की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है। मूल्य संवर्धन करने से कृषि उत्पादन का पूरा उपयोग हो सकेगा। हर फल की कीमत मिलेगी। आंवले में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं हैं। इनसे मुरब्बा, अचार, कैंडी, जैम, टॉफी, जैली, जूस और लड्डू बनते हैं। आंवले का उपयोग बालों के तेल निर्माण के लिए भी होता है।डॉ. ओपी यादव, निदेशक, काजरी जोधपुर