दरअसल, ये कहानी 18 नवंबर 1962 की है। शरीर जमा देने वाली 16000 फीट की ऊंचाई पर मेजर शैतान सिंह अपने जवानों के साथ तैनात खड़े थे। इस दौरान करीब 1200 से ज्यादा चीनी सैनिकों ने मेजर की पोस्ट पर हमला बोल दिया। चीनी सैनिकों को इस बात का अंदाजा था कि भारतीय सैनिकों के पास हथियारों की कमी और बर्फीली जगहों पर युद्ध लड़ने का अनुभव नहीं है। ऐसे में उन्होंने इस पोस्ट को सबसे आसान शिकार माना, लेकिन शायद उन्हें भारतीय सैनिकों की वीरता और देशभक्ति का अंदाजा नहीं था।
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इसके बाद चीनी सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। मेजर शैतान सिंह ने अपने अधिकारियों को मदद के लिए संदेश भिजवाया, लेकिन वहां से पोस्ट छोड़ने का आदेश मिला। मेजर को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने अपने जवानों से कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता है तो जा सकता है, लेकिन जवानों ने मेजर का साथ देने और चीनी सैनिकों को सबक सिखाने का फैसला किया। इसके बाद पूरी बटालियन चीनी सैनिकों पर टूट पड़ी। बर्फीली चोटियों गोलियों और बम के धमाकों से गूंजने लगीं। इस दौरान गोलियां लगने से मेजर बुरी तरह घायल हो गए। साथी सैनिक उन्हें चट्टान के पीछे ले गए। मेजर ने हार नहीं मानी। उन्होंने मशीन गन के ट्रिगर को रस्सी से बांधा और चीनी सैनिकों पर फायरिंग शुरू कर दी। भारत माता के महज 120 जवानों ने 1200 चीनी सैनिकों को खत्म कर दिया। युद्ध खत्म होने के बाद जवानों के शवों की तलाशी शुरू हुई। जब टीम को बर्फ के नीचे से मेजर का शव मिला तो सभी हैरान रह गए। मेजर के एक पांव में रस्सी बंधी थी। वहीं रस्सी के दूसरे हिस्से से मशीन गन का ट्रिगर बंध हुआ था। इसके बाद अन्य जवानों के शवों को भी निकाला गया। भारत भले ही ये युद्ध हार गया, लेकिन चीन को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था। मेजर के इस अदम्य साहस और अद्भुत पराक्रम के लिए उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला। मेजर शैतान सिंह का जन्म लेफ्टिनेंट कर्नल बहादुर हेम सिंह ओबीआई और जवाहर कंवर के यहां हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल बहादुर हेम सिंह जोधपुर स्टेट फोर्सेज में सोवर ओआर के रुप में भर्ती हुए थे। उन्होंने 1914 में प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था।