229 साल प्राचीन है जोधपुर का प्रख्यात कुंजबिहारीजी का मंदिर, धूमधाम से मनाया जाता है तीज का त्यौहार यह मंदिर पुष्टीमार्गीय हवेली (गुरुघर) माना जाता है। महाराजा विजयसिंह ने मंदिर को वल्लभ कुल के गुंसाईंजी को सौंप दिया था। उस समय पुष्टमार्गीय परम्परा की प्रथम पीढ़ी के गोस्वामी गोकुलनाथ जी थे। मंदिर में पुष्टीमार्गीय परम्परानुसार मंगला, शृंगार, राजभोग, उत्थापन भोग, संध्या व शयन आरती का आयोजन होता है। मंदिर के साथ गोशाला का निर्माण भी करवाया गया था जो वर्तमान में भी संचालित है।
दहेज में मिले थे ‘श्यामजी’, राव गांगा ने मंदिर बनवाया तो बन गए ‘गंगश्यामजी’ मंदिर का प्रांगण विशाल है इसके मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर अंदर की ओर मुख्य मंदिर बना है। बाहरी दीवारों और गर्भगृह में सुंदर भित्ति चित्र बने हैं। इतिहासविदों के अनुसार विक्रम संवत 1860 में महाराजा मानसिंह राजतिलक के बाद जब वह विभिन्न मंदिरों में दर्शनार्थ के लिए गए तब बालकृष्णलाल मंदिर में दर्शन से पूर्व गुंसाईजी ने मानसिंह के ललाट पर भस्मी का तिलक देखकर कहा कि यदि आप इसे लगवाएंगे तो कृपया मंदिर में नहीं पधारें।
मेहरानगढ़ प्राचीर से ‘राजरणछोड़’ की आरती के दर्शन करती थी रानी राजकंवर, प्रसिद्ध है जोधपुर का यह कृष्ण मंदिर उस दिन के बाद महाराजा मानसिंह ने बालकृष्ण लाल मंदिर में राज्य की तरफ से मंदिर में नियमित रूप से दी जाने वाली पूजन अन्य सामग्री को भी बंद करवा दिया। वर्तमान में वल्लभाचार्य प्रथम पीठ के 19वीं पीढ़ी के गोस्वामी मिलन बाबा के नेतृत्व में मंदिर का संचालन किया जाता है।