थानाधिकारी लीलाराम ने बताया कि आसाराम के एक समर्थक ने वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट में आसाराम की जमानत के लिए याचिका लगाई थी। इस याचिका के साथ आसाराम के स्वास्थ्य संबंधी कुछ दस्तावेज पेश किए गए थे। जो जेल से सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त करना बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर सेन्ट्रल जेल के अधीक्षक पत्र लिख इन दस्तावेजों के संबंध में शपथ पत्र मांगा था। तब जेल अधीक्षक ने इन दस्तावेजों को फर्जी बताया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने जोधपुर के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर जमानत के लिए फर्जी दस्तावेज पेश करने के बारे में अवगत कराया था। पुलिस की तरफ से वर्ष 2016 में आसाराम व जमानत याचिका लगाने वाले समर्थक के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने जोधपुर के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर जमानत के लिए फर्जी दस्तावेज पेश करने के बारे में अवगत कराया था। पुलिस की तरफ से वर्ष 2016 में आसाराम व जमानत याचिका लगाने वाले समर्थक के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था।
पांच वर्ष की जांच के बाद अब पुलिस ने संबंधित कोर्ट से प्रोडक्शन वारंट लेकर आसाराम को जेल से गिरफ्तार किया। इस मामले के संबंध में पूछताछ के बाद अपराह्न में आसाराम को फिर से कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया।
कर बोर्ड का कमिश्नर बताने वाला कर्मचारी हो चुका है गिरफ्तार
कर बोर्ड का कमिश्नर बताने वाला कर्मचारी हो चुका है गिरफ्तार
पुलिस ने इस मामले में वर्ष 2018 में दिल्ली निवासी रविराय मारवा को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भिजवाया था। वह खुद को केन्द्रीय कर बोर्ड का कमिश्नर बता रहा था, लेकिन जांच में वह कमिश्नर न होकर कर बोर्ड का कर्मचारी निकला था। उसी ने आसाराम की तरफ से फर्जी दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में पेश किए थे। जिसका फायदा आसाराम को होने वाला था।