अमरीका में शोध करते हुए नैनो फर्टिलाइजर तकनीक इजाद करने वाले जोधपुर मूल के वैज्ञानिक डॉ. रमेश रलिया – Dr. Ramesh Raliya ने भारत सरकार व प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के समक्ष अपना प्रजेंटेंशन दिया है। भारत सरकार के आमंत्रण पर दिल्ली आए अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एवं जोधपुर निवासी डॉ. रलिया की समिति के साथ पृथ्वी विज्ञान के मंत्रालय भवन में बैठक हुई। इस बैठक में डॉ. रलिया की तकनीक को सराहा गया और भारत सरकार की ओर से तकनीक पर काम करने का आश्वासन दिया गया।
अमेरिका के वैज्ञानिक डॉ. रलिया ने भारत सरकार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के वैज्ञानिक डॉ. विजय राघवन, सलाहकार सुरेश कुमार एवं जे बी महोपत्रा के साथ मीटिंग की। भारत सरकार की इस वैज्ञानिक समिति के सदस्यों ने डॉ. रलिया के नैनो फ़र्टिलाइजऱ शोध एवं तकनीक की सराहना की एवं भारत के किसानों के लिए इस तकनीक को उपयोग में लाने के लिए सरकार के सहयोग का भरोसा दिलाया। डॉ. रलिया इस समिति के साथ मिलकर भारत-अमेरिका के विभिन्न परस्पर संयुक्त प्रोजेक्ट्स को भारत के शोध संस्थाओं एवं वैज्ञानिकों के लिए लागू करवाने के लिए भी काम करेंगे।
ग़ौरतलब है कि जोधपुर जिले के खारिया खंगार निवासी डॉ. रमेश रलिया जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के छात्र रहे हैं और काजरी जोधपुर में अनुसंधान सहायक के पद पर कार्य कर चुके हैं। इन्होंने अमेरिका में शोध करते हुए नैनो फ़र्टिलाइजऱ का अविष्कार किया। इस तकनीक के जरिए फसल उत्पादन में गुणोत्तर बढ़ोतरी होती है और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
क्या हैं नैनो खाद, क्यों हैं रासायनिक उर्वरक से बेहतर —
नैनोपार्टिकल्स, ऐसे छोटे कण जिनका आकार एक से 100 नैनोमीटर के मध्य होता है। एक नैनोमीटर, एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है। बहुत छोटा आकार होने के कारण पौधे की कोशिकाएं जल्दी से इन पार्टिकल्स का उपयोग कर लेती है, जबकि साधारण खाद का आकार बढ़ा होने एवं जमीन में पाए जाने वाले अन्य कारकों के कारण पौधा, प्रयोग की गई खाद का 50 प्रतिशत से कम ही उपयोग कर पाता है।
नैनोपार्टिकल्स, ऐसे छोटे कण जिनका आकार एक से 100 नैनोमीटर के मध्य होता है। एक नैनोमीटर, एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है। बहुत छोटा आकार होने के कारण पौधे की कोशिकाएं जल्दी से इन पार्टिकल्स का उपयोग कर लेती है, जबकि साधारण खाद का आकार बढ़ा होने एवं जमीन में पाए जाने वाले अन्य कारकों के कारण पौधा, प्रयोग की गई खाद का 50 प्रतिशत से कम ही उपयोग कर पाता है।
डॉ.रलिया ने बताया कि दुनिया में उपयोग में आ रहे फास्फोरस का 45 फीसदी भारत और चीन मिलकर करते हैं। यदि वर्तमान दर से फास्फोरस का उपयोग होता रहा तो आने वाले 8 से 10 दशकों में फॉस्फोरस की उपलब्धता ख़त्म हो जाएगी। नैनोपार्टिकल्स शोध से फॉस्फोरस के बढ़ रहे उपयोग को कम किया जा सकेगा और किसानों के लिए रासायनिक उर्वरकों से कम खर्चीला साबित होगा एवं इससे पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभाव भी काम होंगे।