इतिहास गवाह है कि सन 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध की गडग़ड़ाहट के कारण जोधपुर वायुबेस नागरिक विमानन केंद्र से वायुसेना प्रशिक्षण बेस बना। साहस व पराक्रम की आदर्श परम्पराओं का निर्वाह करते हुए सन 1941 में एलीमेण्ट्री कैडेट प्रशिक्षण फेस के दौरान वायु बेस से एच टी-2, प्रेन्टिसेस व हरवड्स जैसे विमानों का संचालन हुआ। साथ ही 1950 में यह प्रशिक्षण बेस वायुसेना फ्लाइंग कॉलेज में बदल दिया गया। तब से आज तक दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण जोधपुर एयरबेस पर कई प्रकार के लड़ाकू विमानों मसलन मिस्टियर,देेश में निर्मित मारूत, मिग-21, चेतक और मि-08 हेलीकॉप्टर और शक्तिशाली मिग-23 बीन एन विद्यमान रहे। आज हमारे पास कई लड़ाकू विमान हैं। जोधपुर में देशवासियों की सुरक्षा के लिए सभी प्रकार के मिसाइल स्क्वाड्रन मौजूद हैं। सन 1965 के भारत-पाक युद्ध में जब यह देखने में आया कि दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में सुरक्षा तथा प्राणघातक वायुशक्ति की नितांत आवश्यकता है, तब जोधपुर हवाई पट्टी की भूमिका तथा महत्व के कारण ही इसमें व्यापक बदलाव किया गया। जोधपुर क्षेत्र के महत्व को देखते हुए 1971 में डेजर्ट वॉरियर’ विंग की स्थापना की गई।