पश्चिमी राजस्थान की कृषि वानिकी (एग्रो फोरेस्ट्री) में बदलाव आएगा। कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर, जैव उर्वरक (ऑर्गेनिक फर्टीलाइजर) की ऐसी प्रजाति की खोज करेगा, जो पश्चिमी राजस्थान के उच्च तापमान व जैविक परिस्थिति के अुनकूल हो, जिसे क्षेत्र के किसान जैव उर्वरक के रूप मे काम मे ले सकेंगे। इसके लिए स्विट्जरलैण्ड की कृषि वानिकी संवर्द्धन अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने करीब 1.25 करोड़ रुपए की वित्त पोषित चार वर्षीय परियोजना स्वीकृत की है। परियोजना के अंतर्गत मृदा के पोषक तत्वों और सूक्ष्म जीवों से उत्पादित विभिन्न मृदा किण्वकों अर्थात एन्जाइमों का अध्ययन किया जाएगा, जिससे मृदा उर्वरकता को बनाए रखने में सहायता मिलेगी। साथ ही, पश्चिमी राजस्थान में मृदा गुणवत्ता उनके मापदण्ड़, मृदा सूक्ष्मजीव, जैव विविधता तथा जैविक कार्बनिक एग्रो फोरेस्ट्री के प्रभावों व विश्लेषण किया जाएगा। परियोजना के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर व कृषि वानिकी संवर्द्धन संस्था संयुक्त रूप से मिलकर कार्य करेंगे। उल्लेखनीय है कि इस संस्था के अध्यक्ष डॉ रोलेंण्ड फ्रूटिंग को अफ्रीका, भारत की जैव-वानिकी के संरक्षण और परिस्थितियों के संवर्द्धन के लिए विभिन्न परियोजनाओं की लंबा अनुभव रहा है।
— विकसित किया जाएगा एग्रो फोरेस्ट्री का संयुक्त तंत्र किसानों और विश्वविद्यालय के लिए एग्रो फोरेस्ट्री का संयुक्त तंत्र विकसित कर किसानों को अनुसंधान की जानकारी दी जाएगी। किसानों को वन्य औषधियों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रोत्साहित कर आय के अतिरिक्त स्त्रोत विकसित करने में सहायता दी जाएगी।
— आमजन को किया जाएगा जागरुक आमजन में एग्रो फोरेस्ट्री के प्रति जागरुकता लाने के लिए कृषि विवि परिसर में प्रदर्शन इकाई स्थापित की जाएगी। विवि परम्परागत तरीके से हो रही खेती के स्थान पर ऐसी प्रदर्शन इकाइयां स्थापित करेगा, जिसके अंतर्गत एक स्थान पर कम जगह, कम समय में विभिन्न फसलों की खेती हो सके ताकि किसानों को खेती के विभिन्न विकल्प मिल सकेंगे।
—————- पश्चिमी राजस्थान की बदलती कृषि वानिकी परिस्थिति तंत्र, जिनमें मृदा, जल संरक्षण, जैविक खेती के संवर्धन में यह परियोजना लाभप्रद होगी। प्रो बीआर चौधरी, कुलपतिकृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर