जब मुझ पर एसिड से अटैक किया गया, उसके बाद मैं अस्पताल में रही। घर आने के बाद भी तकलीफ में दिन गुजार रही थी। उस समय किसी भी अपने ने साथ नहीं दिया। बल्कि रिश्तेदार तो घरवालों को यह तक कहते थे कि अब इसकी शक्ल खराब हो गई है। इसे जहर दे दो, मर जाएगी। इन सबके बीच मेरे परिवार का बेहद सपोर्ट मिला। पापा ने मकान बेच दिया, लेकिन केस लडऩे में कमी नहीं रखी। कई बार सुसाइड का विचार आया, लेकिन पापा, भाई के सपोर्ट की वजह से मैं फिर से उठ खड़ी हो पाई। 19 मई, 2014 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में मेरे चेहरे पर जीजा ने ही तेजाब फेंका था। जीजा मेरी बहन गुलशन को मारता-पीटता था। एक दिन मैं बहन और उसके दोनों बच्चों को घर ले आई और बेटे का एडमिशन स्कूल में करवा दिया। लेकिन जीजा ने बेटे को स्कूल से उठा लिया। इसके बाद केस कोर्ट में चला गया। उसका फैसला बहन के हक में आया। एक दिन जब मैं अपनी बहन के साथ एग्जाम देने जा रही थी उसी समय जीजा और उसके दोस्त अचानक सामने आ गए। उन्होंने बहन पर तेजाब फेंका। तेजाब के छींटे बहन की बाजू पर गिरे। बहन ने मुझसे भागने को कहा। मैं भागने लगी लेकिन जीजा ने मेरा बुर्का हटाया ओर बाल पकड़कर मेरे चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। पेशी के दौरान आरोपी के वकील जज से बोलते थे कि रेशमा अब बहुत आगे चली गई है, न्यूजपेपर में छपने लगी है। इसलिए आरोपियों को छोड़ देना चाहिए। लेकिन मैंने जज के समक्ष मजबूती से दलील रखी। अब अगले माह ही आरोपियों को सजा सुनाई जाएगी। बकौल रेशमा जीजा के साथ एक अन्य आरोपी भी अटैक में शामिल था, लेकिन नाबालिग होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया।