जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि नियोक्ता को यह दिखाना होगा कि संबंधित कर्मी अपने काम के अतिरिक्त भत्ते के योग्य है।
बैंच के सामने यह सवाल पूछा गया कि क्या कंपनियों द्वारा ईपीएफ एंड मिसलेनियस प्रोविजंस एक्ट 1952 के तहत दिए गए विशेष भत्ते को सेक्शन 2(बी)(ii) के तहत मूल वेतन के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि कंपनियों द्वारा कोई ऐसा तर्क नहीं रखा गया जिससे लगे कि विशेष भत्ता उनके अच्छे प्रदर्शन के तौर पर उन्हें दिया जाता है।