रॉकवेल के एशिया प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय विपणन निदेशक जॉन वाट्स ने यहां आए भारतीय पत्रकारों के एक छोटे से समूह से कहा कि कंपनी के लिए भारत विकास के अवसरों के मामले में चीन के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बाजार है।
वाट्स ने कहा कि कंपनी के बेंगलुरू स्थित डिजायन सेंटर में करीब 600 लोग काम करते हैं, जिसकी संख्या अगले पांच सालों में दोगुनी कर दी जाएगी, ताकि उत्पादन डिजायन, वैश्विक सर्टिफिकेशन और जीवन-चक्र डिजायन की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा किया जा सके।
अमरीका के मलवौकी की कंपनी रॉकवेल में कुल 23,000 कर्मचारी काम करते हैं और इसका कारोबार 6.7 अरब डॉलर का है। यह औद्योगिक ऑटोमेशन में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। वाट्स ने कहा कि भारत में विशाल इंजीनियरिंग प्रतिभा है और उन्होंने कहीं पढ़ा है कि भारत से हर रोज एक जंबो जेट में जितने यात्री होते हैं, उतने इंजीनियर अमेरिका के सिलिकॉन वैली में हवाई जहाज से उतरते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जीवन-चक्र चरण की तुलना में प्रौद्योगिकी के शुरुआती चरण में ही अपनाने की दर ‘50-50’ है।
रॉकवेल ऑटोमेशन इंडिया के प्रबंधक (प्रौद्योगिकी और रणनीतिक भागीदारी) चंद्रमौली के. एल. का कहना है कि उन्होंने भारत में प्रौद्योगिकी को सबसे तेज गति से भी अपनाते देखा है, क्योंकि कई कंपनियां अपना कार्यालय और फैक्ट्रियां मलेशिया व अमेरिका में भी स्थापित करती है और वे नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने की इच्छुक होती है।
उन्होंने कहा कि नवीनतम ऑटोमेशन ज्यादातर बॉयो-प्रोसेसिंग उत्पादों में हो रहा है। वॉट ने बताया कि रॉकवेल अपने कारोबार की वृद्धि के लिए जिन उद्योगों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है खनिज उद्योग उसमें से एक है।
उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया की कंपनियां रिमोट यूनिट्स की स्थापना कर रही है, ताकि खनन गतिविधियों की निगरानी और नियंत्रण कर सके, क्योंकि दूरदराज की खानों तक प्रबंधक को विमान से ले जाना महंगा पड़ता है।
वहीं, उन्होंने कहा कि भारत के मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि यहां ज्यादातर खदानें आबादी के बीच में ही है। भारत के खनन क्षेत्र ऑटोमेशन को ज्यादातर सुरक्षा पहलू को ध्यान में रखकर अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कारोबार थोड़ा कठिन है, क्योंकि यहां शुरुआती लागत पर ज्यादा ध्यान दिया है, जबकि उत्पाद के पूरे जीवन-चक्र की लागत को नहीं देखा जाता, जिसमें रॉकवेल की विशेषज्ञता है।