आप भी बलात्कार में हिन्दू-मुस्लिम देखती हैं.. आपने वो कविता लिखी, उसमें इरफ़ान नाम लिखा”!! कभी कभी ना चाहते हुए भी स्पष्टीकरण देना पड़ता है.. नहीं मैं किसी अपराध में धर्म जाति नहीं देखती जब तक वह धर्म या जाति के प्रभावों में लिप्त ना हो.. बलात्कार को कभी भी categorise करना गलत ही है..मगर हाँ मैं बलात्कार में मीडिया और लोगों का रुख जरूर देखती हूँ..किस बलात्कार पर क्या हेडलाइन होता है और कौन कहाँ से क्या प्रतिक्रिया करता है इस पर पैनी नजर जरूर रहती है..होनी भी चाहिए..तभी कहती हूँ बलात्कार सामाजिक समस्या है, राजनैतिक नहीं..बलात्कार समाज की मूल इकाई परिवार की असफलता का आइना है..राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी बाद की वजह है..
अब आते हैं जाति धर्म के बलात्कार वाली प्रतिक्रिया पर.. किसी भी दलित या मुस्लिम के बलात्कार पर राजनैतिक हलचल क्या होती है? मिडिया इसे कितने प्रमुखता से छापती है? नाम गांव पते के साथ..कठुआ की गूंज हॉलीवुड, पाकिस्तान और विदेशों तक गूंजी थी..कैसे और क्यों? क्या सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि बच्ची मुस्लिम थी? कठुआ पर नींद लगभग डेढ़ महीने बाद कैसे खुली थी और जिस पर आरोप है उनमें से एक प्रत्यक्ष प्रमाण के साथ घटना के समय कठुआ में मौजूद नहीं था. जिनलोगों ने विरोध किया था जिसमें मैं भी शामिल हूँ सिर्फ इसी बात पर आपत्ति की थी और करनी भी चाहिए..
जब नॉट इन माई नेम होता है तब दर्द होता है..क्योंकि उन सारे अपराधों के शिकार दूसरे भी हैं जिनके दर्द पर ना तो कैंडल जलता है ना स्क्रीन काली होती है ना किसी को डर लगता है ना ही कोई अवार्ड वापस करता है..तो खून इसी बात पर खौलता है.. बलात्कार पर नहीं बल्कि रुख पर हिन्दू मुस्लिम करना पड़ता है.. अपराधी में भेद भाव करने वालों को उन्हीं के भाषा में प्रत्युत्तर देना शायद लोगों को रास नहीं आता मगर कलम उठाई है तो संतुलन ही रहेगा.. ना तो तुष्टिकरण में झुकेगा ना गलत पर आँख मूंदा जाएगा।