बीजिंग का ‘मेड इन चाइना २०२५’ प्रोग्राम औद्योगिकिरण की नीति पर आधारित है। जैसे चीन
अब वाहनों को रोबोटिक्स के बाद अब नए तरह की ऊर्जा से चलाने पर मंथन कर रहा है
जबकि मोदी का मेक इन इंडिया प्रोग्राम पूरी तरह से निवेश की रणनीति पर आधारित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे ने दिल्ली से थोड़ी दूर दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फोन फैक्ट्री का उद्धाटन किया। इसे मेक इन इंडिया प्रोग्राम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया जो भारतीय अर्थव्यवस्था को २५ फीसदी के उच्चतम स्तर पर ले जाने में मदद करेगी। इससे २०२० तक बड़ी संख्या में युवाओं को मिलने वाली नौकरियां मेक इन इंडिया प्रोग्राम को मजबूत बनाएंगी। हालांकि देश में निवेश की स्थिति तय मानकों के अनुसार नहीं है।
विश्व बैंक और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों की मानें तो २०१४ से उत्पादन क्षेत्र में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था फ्रांस को पछाडक़र दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जरूर बनी है। कार्लेटॉन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर विवेक देहेजिया कहते हैं कि मेक इन इंडिया मोदी सरकार की सर्वश्रेष्ठ योजना है। हालांकि बुनियादी ढांचे और व्यापारिक माहौल की अस्थिरता में इसे पूरा करना चुनौतीपूर्ण होगा। तेल के बाद भारत में विदेशी उत्पादों की खपत बढ़ी है। इसमें सबसे अधिक स्मार्टफोन, टीवी और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद हैं।
मोदी के नेतृत्व में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) का दायरा बढ़ा है जिससे उसकी बिजनेस रैंकिंग में सुधार हुआ है। ब्लूमबर्ग के आर्थिक विश्लेषक अभिषेक गुप्ता का मानना है कि भारत में होने वाले कुल निवेश में १.२ फीसदी ही एफडीआइ से आ रहा है। ऐसे में विदेशी फर्मो के निवेश से आर्थिक स्थिति में सुधार संभव नहीं है। हालांकि इसके लिए उत्पादन क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। ये स्पष्ट है कि किसी एक बड़ी डील या समझौते से रातों रात बड़ा बदलाव संभव नहीं है। कुछ समय बाद ही इसका असर दिखेगा।