कई और पदों के नामों को भी स्त्रीलिंग किया जाएगा। जैसे ‘प्रॉसिक्यूटर’ का स्त्रीलिंग नाम ‘प्रॉसिक्यूरियर’ कर दिया जाएगा। हालांकि जाने-माने लेखक बर्नार्ड सेर्किगलिनी फैसले की आलोचना की है। सेर्किगलिनी के मुताबिक, फ्रेंच भाषा पहले से ही नारीवादी है। उधर अकादमी के मुताबिक, हमारा मानना है कि महिलाओं की भूमिका पहचानते हुए उन्हें फ्रेंच भाषा में जगह देना अहम है। हालांकि, यह उस स्थिति में मुमकिन है जब ऐसा करने से भाषा का मूल अर्थ न बदले।
समान कानूनी आधिकार भी आगे
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में फ्रांस उन छह देशों के सूची में है जहां महिलाओं और पुरुषों को कार्य संबंधी समान कानूनी अधिकार हैं। फ्रांस के अलावा इन देशों में बेल्जियम, डेनमार्क, लातविया, लग्मबर्ग और स्वीडन शामिल हैं। इन देशों को 100 में 100 अंक दिए गए हैं। अध्ययन में 187 देश शामिल किए गए। चीन को 76.25 भारत का 71.25, पाकिस्तान का 46.25 अंक मिले हैं। सबसे खराब स्थिति सऊदी अरब की है।
अनाधिकारिक रूप से चलन में
फ्रांस में पहले से ही महिलाओं के लिए पदों के अलग नाम प्रचलित हैं। जैसे पुरुष लेखक को ‘ऑथर’ बुलाया जाता है, जबकि महिला लेखक को ‘ऑथ्योर’ या आथ्योरिस। इसके अलावा पुरुष और महिलाओं को अलग-अलग पदनाम से ही बुलाया जाता है। मसलन कोर्ट में महिला जज को ‘ला जज’ और महिला मंत्री को ‘ला मिनिस्टर’ कहा जाता है। बदलाव के बाद आधिकारिक रूप से पदनाम जारी किए जाएंगे।