सरकार की योजना के अनुसार अगले कुछ ही वर्षों में यह देश पूरी तरह से बिना बाबुओं वाला पहला देश बन जाएगा। डॉक्टरी सलाह हो या वाहनों के कागजात, स्कूल या स्थानीय जरूरतें। जल्द ही लोगों को न ही किसी दफ्तर जाना होगा और न किसी अफसर से मिलना होगा। कागजों का इस्तेमाल पूरी तरह बंद हो जाएगा।
ये भी पढ़ेः रोबोट से नहीं डरते कर्मचारी, मानते हैं शानदार एक्स्ट्रा पावर वाला दोस्त ये भी पढ़ेः ऐसे स्टार्ट करे इंटरनेशनल बिजनेस तो हर हाल में मिलेगी कामयाबी माता-पिता जान सकेंगे कि बच्चों ने होमवर्क पूरा किया है या नहीं। बच्चे के जन्म पर उसका स्वत: पंजीकरण हो जाएगा और माता पिता को इमेल से प्रमाणपत्र मिला जाएगा। ऐसी ही डिजिटल सुविधाएं अन्य सेवाओं के लिए भी उपलब्ध होगी। राष्ट्रीय डिजिटल सलाहकार मार्टन केवेट्स के अनुसार जल्द ही नौकरशाहों की न्यूनतम जरूरत पड़ेगी।
भारत में नौकरशाही पर बड़ा खर्च
पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी (पर्क) नाम की एक संस्था के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की नौकरशाही एशियाई देशों में सबसे पिछड़ी और सुस्त है। नौकरशाह खुद को सत्ता का केंद्र बना देते हैं। इन पर जीडीपी का करीब 8 फीसदी खर्च होता है। केंद्र और राज्यों के कर्मचारियों पर करीब 10 लाख 18 हजार करोड़ खर्च होता है। ऐसे में भारत भी एस्टोनिया के तर्ज पर डिजीटलाइजेशन अपनाकर भारी खर्च से छुटकारा पा सकता है। मोदी सरकार द्वारा डिजीटाईजेशन को दिए जा रहे बढ़ावे को देख कर जल्दी ही भारत में भी ऑनलाइन ऑफिस की अवधारणा आ सकती है।