जानें कैसे हुआ
अभ्यर्थियों ने सबसे पहले उत्तीर्ण हुए अभ्यर्थी की कटऑफ देखि जो अल्पसंख्यक में था। लेकिन अल्पसंख्यक का कोई कोटा नहीं था। इस अभ्यर्थी ने OBC केटेगरी से आवेदन किया था। अब OBC की कट ऑफ के अनुसार तो ये बाहर होना ही चाहिए था। लेकिन हम आपको बता दें कि यह अभ्यर्थी दसवीं के समकक्ष पढ़ा लिखा है और आईटीआई भी कर रखी है। इस अभ्यर्थी की इतनी कम कटऑफ में पास होने का सबसे बड़ा कारण है इसकी अप्रेंटशिप, जिसके चलते इसकी कम कटऑफ गई है। इस अभ्यर्थी ने 2010 से 2014 तक उत्तर रेलवे में अप्रेंटशिप की है और उसे पास भी किया है। बहुत से अभ्यर्थियों के सन्देश मिलने के बाद इसे साफ़ किया गया कि आखिर इतने कम अंकों में इसे पास कैसे किया गया। अभ्यर्थी किसी भी प्रकार की अफवाहों पर ध्यान नहीं देवें, परिणामों में गड़बड़ होगी तो रेलवे इसकी पुष्टि करेगा।
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जानें क्या है Normalisation प्रक्रिया अब मान लीजिए कि शिफ्ट -1 के उम्मीदवार 60, 50, 45, 65 और 55 अंक प्राप्त करते हैं। शिफ्ट -2 के उम्मीदवार 100, 80, 70, 90 और 85 अंक प्राप्त करते हैं। शिफ्ट -3 के उम्मीदवार 90, 95, 60, 75 और 80 अंक प्राप्त करते हैं।
यहाँ पर उम्मीदवार प्रश्नपत्रों के स्तर के कारण अलग-अलग शिफ्टों में उम्मीदवारों के अंकों में भिन्नता देख सकते हैं। इसलिए, हम पहली शिफ्ट का माध्य ज्ञात करेंगे और वह 55 अंक होगा। फिर हम दूसरी शिफ्ट का माध्य ज्ञात करेंगे जो कि 85 अंक होगा। इस प्रकार, शिफ्ट-1 और शिफ्ट-2 के माध्य के मध्य का अंतर 30 है। यदि हम पहली शिफ्ट के उम्मीदवार के अंकों में 30 अंक जोड़ देते हैं, तो नॉर्मलाइजेशन अंक (60+30=90), (50+30=80), (45+30=75), (65+30=95) और (55+30=85) होंगे, जो अब शिफ्ट-2 के अंकों के बराबर होंगे। अब शिफ्ट-1और शिफ्ट-2 के अंक बराबर होंगे।