स्वामी जी की पगड़ी और नाम की खासियत
स्वामी विवेकानंद के सिर पर जो पगड़ी और अंगरखा था, वह खेतड़ी के राजा अजीत सिंह की भेंट थी। इसके अलावा, स्वामी जी को ‘विवेकानंद’ नाम भी राजा अजीत सिंह ने ही दिया था, जो पहले ‘विविदिषानंद’ था और बोलचाल की भाषा में कठिन था।दादी जी की यादें… मिला था एक सिक्का
खेतड़ी निवासी एवं इसरो बेंगलुरु के पूर्व निदेशक एवं पूर्व वाइस चांसलर डिफेंस यूनिवर्सिटी पुणे डॉ. सुरेंद्र पाल ने बताया कि उनकी दादी भगवती देवी स्वामी विवेकानंद के साथ नवरात्रों में एक महत्वपूर्ण घटना का हिस्सा थीं। 1891 में स्वामी जी ने कन्याओं को भोजन करवा कर उन्हें एक सिक्का भेंट किया था, जो उनके परिवार के पास अभी तक था, जिसे उन्होंने संग्रहालय में दे दिया। स्वामी जी ने उनकी दादी के पिताजी से कहा था कि उनकी पुत्री विलक्षण बुद्धि की हैं और उन्हें शिक्षा देना चाहिए। तब राजा अजीत सिंह की छोटी राजकुमारी चांद कंवर के साथ महलों में दादी के भी पढ़ने की व्यवस्था की गई। वहां उन्हें अंग्रेजी,संस्कृत व पर्सियन भाषा का अच्छा ज्ञान हो गया था।स्वामी विवेकानंद का संस्कृत अध्ययन
राजा अजीत सिंह के दरबार में पंडित नारायण दास शास्त्री संस्कृत और व्याकरण के अच्छे ज्ञाता थे। स्वामी विवेकानंद ने उनसे संस्कृत और पाणिनी व्याकरण का अध्ययन किया था। पंडित शास्त्री के परपोत्र पवन कुमार शर्मा ने यह जानकारी साझा की कि स्वामी जी ने अपने समय के सबसे प्रमुख शास्त्रज्ञ से संस्कृत का गहरा अध्ययन किया था।शिकागो यात्रा का खर्च खेतड़ी ठिकाने ने उठाया
स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध शिकागो धर्म सम्मेलन यात्रा का सपूर्ण खर्च खेतड़ी ठिकाने ने उठाया था। यह पहल स्वामी जी और खेतड़ी के बीच के गहरे रिश्ते को और भी मजबूत करती है। यह भी पढ़ें