पुण्यतिथि पर विशेष राजेश शर्मा झुंझुनूं. स्वामी विवेकानंद का जितना लगाव खेतड़ी से था उतना ही लगाव उत्तराखंड के अल्मोड़ा से भी था। खेतड़ी ने जहां उनको नाम व विशेष पहचान दी, उसी प्रकार अल्मोड़ा ने उनकी जान बचाई थी।
स्वामी विवेकानंद पर पंद्रह वर्ष से शोध कर रहे डॉ जुल्फीकार भीमसर के अनुसार स्वामी विवेकानंद ने अपने अल्प जीवनकाल में ( 1890, 1897 व 1898 ई. ) में 3 बार अल्मोड़ा की यात्रा की। इन तीनों यात्राओं में स्वामीजी ने अल्मोड़ा से अपने शिष्यों को कुल 26 पत्र लिखे थे। स्वामी विवेकानंद ने 1890 ई. में अपने गुरभाई स्वामी अखंडानन्द के साथ पैदल ही नैनीताल से अल्मोड़ा की प्रथम यात्रा की। लम्बी पैदल यात्रा की भूख और थकान के चलते अल्मोड़ा पहुंचते- पहुंचते स्वामीजी मूर्छित हो गए। एक शिला पर गिर पड़े। उनकी यह अवस्था देख गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द पानी की खोज में दौड़ पड़े। निर्जन में उस शिला के आस – पास कुछ था तो बस एक कब्रिस्तान। कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले संत जुल्फिकार उस निर्जन में देवदूत बनकर आए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को खीरा ( ककड़ी ) खिलाया और पानी पिलाया। जिससे स्वामीजी में पुन चेतना आई। इस शिला को ‘करबला कब्रिस्तान शिला’ के नाम से एक स्मारक के रूप में विकसित किया गया है। जुल्फिकार के वंशज आज भी इस कब्रिस्तान शिला और निकट ही स्थित विवेकानंद रेस्ट हॉल की देखभाल करते हैं।
स्वामी विवेकानंद पर पंद्रह वर्ष से शोध कर रहे डॉ जुल्फीकार भीमसर के अनुसार स्वामी विवेकानंद ने अपने अल्प जीवनकाल में ( 1890, 1897 व 1898 ई. ) में 3 बार अल्मोड़ा की यात्रा की। इन तीनों यात्राओं में स्वामीजी ने अल्मोड़ा से अपने शिष्यों को कुल 26 पत्र लिखे थे। स्वामी विवेकानंद ने 1890 ई. में अपने गुरभाई स्वामी अखंडानन्द के साथ पैदल ही नैनीताल से अल्मोड़ा की प्रथम यात्रा की। लम्बी पैदल यात्रा की भूख और थकान के चलते अल्मोड़ा पहुंचते- पहुंचते स्वामीजी मूर्छित हो गए। एक शिला पर गिर पड़े। उनकी यह अवस्था देख गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द पानी की खोज में दौड़ पड़े। निर्जन में उस शिला के आस – पास कुछ था तो बस एक कब्रिस्तान। कब्रिस्तान की देखभाल करने वाले संत जुल्फिकार उस निर्जन में देवदूत बनकर आए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को खीरा ( ककड़ी ) खिलाया और पानी पिलाया। जिससे स्वामीजी में पुन चेतना आई। इस शिला को ‘करबला कब्रिस्तान शिला’ के नाम से एक स्मारक के रूप में विकसित किया गया है। जुल्फिकार के वंशज आज भी इस कब्रिस्तान शिला और निकट ही स्थित विवेकानंद रेस्ट हॉल की देखभाल करते हैं।
#swami vivekanand and almoda
इसके बाद स्वामी विवेकानंद मई 1897 ई. में जब दूसरी बार अल्मोड़ा आए तब अल्मोड़ा की जनता ने अतुल्य उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। अल्मोड़ा बाजार में स्थित रघुनाथ मंदिर के चबुतरे पर खड़े होकर पांच हजार के विशाल जनसमूह को संबोधित किया। इस भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था जिसे स्वामी विवेकानंद ने देखते ही पहचान लिया। यह वही जुल्फिकार थे, जिन्होंने 7 वर्ष पहले कब्रिस्तान में स्वामीजी की जान बचाई थी। विशाल जनसमूह में स्वामीजी ने उन्हें पहचान लिया और गदगद ह्रदय से गले लगाकर उनका आभार व्यक्त किया और मंच से कहा कि इस व्यक्ति ने मेरे प्राणों की रक्षा की थी।
स्वामी विवेकानंद तीसरी और अंतिम बार 1898 ई. में 9 शिष्यों के साथ अल्मोड़ा आए।
इसके बाद स्वामी विवेकानंद मई 1897 ई. में जब दूसरी बार अल्मोड़ा आए तब अल्मोड़ा की जनता ने अतुल्य उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। अल्मोड़ा बाजार में स्थित रघुनाथ मंदिर के चबुतरे पर खड़े होकर पांच हजार के विशाल जनसमूह को संबोधित किया। इस भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था जिसे स्वामी विवेकानंद ने देखते ही पहचान लिया। यह वही जुल्फिकार थे, जिन्होंने 7 वर्ष पहले कब्रिस्तान में स्वामीजी की जान बचाई थी। विशाल जनसमूह में स्वामीजी ने उन्हें पहचान लिया और गदगद ह्रदय से गले लगाकर उनका आभार व्यक्त किया और मंच से कहा कि इस व्यक्ति ने मेरे प्राणों की रक्षा की थी।
स्वामी विवेकानंद तीसरी और अंतिम बार 1898 ई. में 9 शिष्यों के साथ अल्मोड़ा आए।
#swami vivekanand and almoda खेतड़ी से रिश्ते
-खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने ही विवेकानंद को पगड़ी व राजस्थानी अंगरखा भेंट किया, जो उनकी खास पहचान बन गए।
-विवेकानंद नाम भी खेतड़ी की ही देन है।
-वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामी खेतड़ी तीन बार आए।
-खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने ही विवेकानंद को पगड़ी व राजस्थानी अंगरखा भेंट किया, जो उनकी खास पहचान बन गए।
-विवेकानंद नाम भी खेतड़ी की ही देन है।
-वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामी खेतड़ी तीन बार आए।
स्वामी विवेकानंद
जन्म 12 जनवरी 1863
निधन 4 जुलाई 1902