बिसाऊ. अपनी गायकी के दम पर देश भर में पहचान बना चुकी मरु कोकिला सीमा मिश्रा को कौन नहीं जानता, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि सीमा की पहली किलकारी राजस्थान के झुंझुनूं जिले के बिसाऊ कस्बे में गूंजी थी। बाद में उनका परिवार सीकर जिले के रामगढ़ शेखावाटी में बस गया। सीमा का ससुराल दौसा जिले के महेश्वरा कला गांव में है।
गढ़ के पीछे (वर्तमान वार्ड 18) एक मकान में उनके दादा गजानंद मिश्रा ‘मास्टरजीÓ का परिवार रहता था। 3 नवम्बर 1976 को सीमा का जन्म संयुक्त परिवार के बीच हुआ। महज डेढ महीने बाद ही उनके पिता शांति कुमार मिश्रा का कोटा की निजी फ र्म में तबादला हो गया। सीमा का बचपन भी कोटा में बीता, वहां आठवीं तक शिक्षा ग्रहण करते करते सीमा के गाने का शौक स्कूल कार्यक्रमों में मंच पर दिखाई देने लगा। उसके बाद सीमा का परिवार रामगढ़ शेखावाटी स्थित ननिहाल में आ गया। जहां उसने नौंवी कक्षा से कॉलेज प्रथम वर्ष तक अध्ययन किया।
गढ़ के पीछे (वर्तमान वार्ड 18) एक मकान में उनके दादा गजानंद मिश्रा ‘मास्टरजीÓ का परिवार रहता था। 3 नवम्बर 1976 को सीमा का जन्म संयुक्त परिवार के बीच हुआ। महज डेढ महीने बाद ही उनके पिता शांति कुमार मिश्रा का कोटा की निजी फ र्म में तबादला हो गया। सीमा का बचपन भी कोटा में बीता, वहां आठवीं तक शिक्षा ग्रहण करते करते सीमा के गाने का शौक स्कूल कार्यक्रमों में मंच पर दिखाई देने लगा। उसके बाद सीमा का परिवार रामगढ़ शेखावाटी स्थित ननिहाल में आ गया। जहां उसने नौंवी कक्षा से कॉलेज प्रथम वर्ष तक अध्ययन किया।
#singer seema mishra 11 वर्ष की उम्र में दी पहली प्रस्तुति
सीमा ने कोटा के स्कूल में 11 वर्ष की उम्र में अपने गीत की पहली प्रस्तुति दी। रामगढ़ आने के बाद पहले स्कूल ओर फिर कॉलेज के कार्यक्रमों में सीमा की आवाज की मिठास श्रोताओं के कानों में मिश्री रस घोलने लगी। जिसकी बदौलत सीमा ने जिला स्तर पर भी अपना लोहा मनवाया।
सीमा ने कोटा के स्कूल में 11 वर्ष की उम्र में अपने गीत की पहली प्रस्तुति दी। रामगढ़ आने के बाद पहले स्कूल ओर फिर कॉलेज के कार्यक्रमों में सीमा की आवाज की मिठास श्रोताओं के कानों में मिश्री रस घोलने लगी। जिसकी बदौलत सीमा ने जिला स्तर पर भी अपना लोहा मनवाया।
#singer seema mishra bisau सीमा की आवाज बिना अधूरे हैं संगीत समारोह
चाहे स्कूल कॉलेज के सालाना कार्यक्रम हो या फि र विवाह उत्सव में संगीत संध्या, सभी नृत्य कार्यक्रम सीमा मिश्रा की आवाज के बिना अधूरे हैं। सीमा के गाए हजारों लोक गीतों में चुनिंदा गीतों पर महिलाओं व युवतियों को थिरकते हुए देखा जा सकता है। 25 वर्ष तक मंच साझा कर चुकी सीमा की एक झलक पाने के लिए आज भी शेखावाटी सहित प्रवासी बंधु उत्साहित रहते हैं। विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आयोजक उनसे सीधे सम्पर्क करते हैं।
चाहे स्कूल कॉलेज के सालाना कार्यक्रम हो या फि र विवाह उत्सव में संगीत संध्या, सभी नृत्य कार्यक्रम सीमा मिश्रा की आवाज के बिना अधूरे हैं। सीमा के गाए हजारों लोक गीतों में चुनिंदा गीतों पर महिलाओं व युवतियों को थिरकते हुए देखा जा सकता है। 25 वर्ष तक मंच साझा कर चुकी सीमा की एक झलक पाने के लिए आज भी शेखावाटी सहित प्रवासी बंधु उत्साहित रहते हैं। विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आयोजक उनसे सीधे सम्पर्क करते हैं।
#seema mishra dausa मां की लोरी ने दिया दुलार
सीमा बचपन में अपनी मां लक्ष्मी मिश्रा की लोरी सुनकर तुतली जुबां में उसी गीत को फिर से गाने की कोशिश करती थी। उनकी मां बताती है कि भूख लगने पर वह कटोरी-चम्मच जैसे बर्तन हाथ से बजाते हुए गाने के अंदाज में खाने की डिमांड करती थी। मां ने कभी अपनी बेटी के हौंसले को कम नहीं होने दिया, फिर बड़े भाई राजीव बूंटोलिया ने बखूबी हिम्मत बढ़ाई। सीमा की बड़ी बहन वंदन शर्मा व छोटे भाई यश मिश्रा का कहना है कि जब लोग उन्हें सीमा के नाम से पहचानते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।
सीमा बचपन में अपनी मां लक्ष्मी मिश्रा की लोरी सुनकर तुतली जुबां में उसी गीत को फिर से गाने की कोशिश करती थी। उनकी मां बताती है कि भूख लगने पर वह कटोरी-चम्मच जैसे बर्तन हाथ से बजाते हुए गाने के अंदाज में खाने की डिमांड करती थी। मां ने कभी अपनी बेटी के हौंसले को कम नहीं होने दिया, फिर बड़े भाई राजीव बूंटोलिया ने बखूबी हिम्मत बढ़ाई। सीमा की बड़ी बहन वंदन शर्मा व छोटे भाई यश मिश्रा का कहना है कि जब लोग उन्हें सीमा के नाम से पहचानते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।
#seema mishra dausa चांद चढ्यो गिगरार….
जयपुर में स्टेज शो करते करते सीमा मिश्रा को पहला बिग ब्रेक वीणा कैसेट की तरफ से मिला। चांद चढ्यो गिगनार एल्बम के साथ उनकी गायकी को नया मोड़ मिला। सन 2000 से 2007 तक सीमा मिश्रा ने लोक गीतों के दर्जनों एल्बम के लिए अपनी आवाज दी। आज सालों बाद भी उनके गीत ताजा हवा के झोंके के समान लगते हैं। सिर चढ़कर बोलती इसी आवाज के दम पर सीमा को राजस्थान की लता मंगेशकर तक कहा गया है। उन्होंने लोकगीतों के अलावा हिन्दी भजन एवं गीत भी गाए हैं।
भजनों से शुरू हुआ गायकी का सफ र
सीमा मिश्रा के गायकी के शौक को आगे बढ़ाने में उनके बड़े भाई राजीव बूंटोलिया ने खूब सहयोग किया। खुद सीमा मानती है कि उनको आज इस मुकाम पर पहुंचाने में उनकी मां लक्ष्मी मिश्रा के बाद भाई राजीव का अहम योगदान रहा है। उन्होंने अपने भाई के साथ 1993 में फ तेहपुर के दो जांटी बालाजी के यहंा भजनों में प्रस्तुति दी। सन 1995 में दोनों भाई बहन जयपुर आ गए ओर वहां विभिन्न आर्केस्ट्रा पार्टियों के साथ जुड़कर संगीत कार्यक्रमों में गाने के रियाज को बरकरार रखा।
जयपुर में स्टेज शो करते करते सीमा मिश्रा को पहला बिग ब्रेक वीणा कैसेट की तरफ से मिला। चांद चढ्यो गिगनार एल्बम के साथ उनकी गायकी को नया मोड़ मिला। सन 2000 से 2007 तक सीमा मिश्रा ने लोक गीतों के दर्जनों एल्बम के लिए अपनी आवाज दी। आज सालों बाद भी उनके गीत ताजा हवा के झोंके के समान लगते हैं। सिर चढ़कर बोलती इसी आवाज के दम पर सीमा को राजस्थान की लता मंगेशकर तक कहा गया है। उन्होंने लोकगीतों के अलावा हिन्दी भजन एवं गीत भी गाए हैं।
भजनों से शुरू हुआ गायकी का सफ र
सीमा मिश्रा के गायकी के शौक को आगे बढ़ाने में उनके बड़े भाई राजीव बूंटोलिया ने खूब सहयोग किया। खुद सीमा मानती है कि उनको आज इस मुकाम पर पहुंचाने में उनकी मां लक्ष्मी मिश्रा के बाद भाई राजीव का अहम योगदान रहा है। उन्होंने अपने भाई के साथ 1993 में फ तेहपुर के दो जांटी बालाजी के यहंा भजनों में प्रस्तुति दी। सन 1995 में दोनों भाई बहन जयपुर आ गए ओर वहां विभिन्न आर्केस्ट्रा पार्टियों के साथ जुड़कर संगीत कार्यक्रमों में गाने के रियाज को बरकरार रखा।