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Dussehra : राजस्थान के इस जिले में है अनूठी परम्परा, दशहरे पर नहीं जलाया जाता है रावण, वजह करेगी हैरान

Dussehra Unique Tradition : राजस्थान के इस जिले में रावण दहन की अनूठी परम्परा है। यहां दशहरे पर नहीं, चतुर्दशी पर रावण को जलाया जाता है। वजह जानकर हैरान रह जाएंगे।

झुंझुनूOct 12, 2024 / 05:01 pm

Sanjay Kumar Srivastava

बिसाऊ की मूक रामलीला में चतुर्दशी के दिन मैदान में खड़ा रावण के पुतला और युद्ध करती उसकी सेना। फाइल फोटो

Dussehra Unique Tradition : राजस्थान के शेखावाटी में कई जगह रावण दहन की अनूठी परम्परा है। इनमें से एक बिसाऊ की विश्वप्रसिद्ध मूक रामलीला भी है। यहां दशहरे पर नहीं, बल्कि चतुर्दशी के दिन रावण वध की लीला होती है। इसी दिन रावण का पुतला जलाया जाता है। यह परम्परा पिछले 200 साल से चली आ रही है। दरअसल बिसाऊ में होने वाली मूक रामलीला 15 दिन तक चलती है। इसकी शुरुआत अन्य रामलीला की तरह नवरात्र के पहले दिन से होती है, लेकिन समापन पूर्णिमा के दिन भरत-मिलाप और राम राज्याभिषेक की लीला के साथ होता है। इससे एक दिन पहले चतुर्दशी को रावण वध होता है और रावण का पुतला जलाया जाता है।

दशहरे के दिन जलता है कुंभकर्ण

खास बात यह है कि पूरे भारत में दशहरे के दिन रावण वध होता है, लेकिन बिसाऊ में दशहरे के दिन कुंभकरण वध होगा और कुंभकरण का ही पुतला जलाया जाएगा। बिसाऊ की मूक रामलीला में चार पुतलों का दहन अलग-अलग दिन किया जाता है। इसमें कुंभकर्ण, मेघनाद, नरान्तक और रावण के पुतलों का दहन किया जाता है।
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विदेशी पर्यटकों और प्रवासियों का आकर्षण

यह मूक रामलीला स्थानीय निवासियों ही नहीं, बल्कि विदेशियों और अप्रवासी भारतीयों के लिए भी आकर्षक का केंद्र बन चुकी है। हर साल विदेशी सैलानी और प्रवासी इस रामलीला का हिस्सा बनने के लिए यहां आते हैं।

इसलिए पड़ी परम्परा

साहित्यकार रामजीलाल कल्याणी ने बताया कि भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था। इसलिए बिसाऊ की रामलीला में 14वें दिन रावण वध की लीला दिखाई जाती है। साथ ही रामलीला में सभी प्रसंग 10 दिन में दिखाया जाना संभव नहीं है, जबकि 15 दिन की रामलीला में सभी प्रसंगों को विस्तार से दिखाया जा सकता है।

आपस में नहीं करते संवाद

रामलीला का कोई पात्र संवाद नहीं बोलता। शाम को कलाकार चेहरे पर मुखौटे लगाकर खुले मैदान में ढोल की आवाज पर नृत्य की मुद्रा में लीला का मंचन करते हैं। इसके लिए मुख्य बाजार में बीच सड़क पर बालू मिट्टी बिछा कर दंगल तैयार किया जाता है। पात्रों की पोशाक भी स्वरूप के अनुकूल होती है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता का सलमें-सितारों से शृंगार किया जाता है।
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