जीवन के 96 बसंत देख चुके डॉ. घासीराम वर्मा अमरीका में कई साल तक गणित के प्रोफेसर व अन्य बड़े पदों पर रहे। अमरीका से वापस लौटने के सवाल पर कहा कि वहां तमाम तरह की सुख सुविधाएं मौजूद हैं। लेकिन मैं झुंझुनूं के सीगडी गांव की माटी में जन्मा। यहीं बचपन बीता। अब चाहता हूं जीवन के आखिरी क्षण मेरी माटी में व मेरे अपनों के बीच बिताऊ। जो सम्मान भारत में है वह दुनिया के किसी देश में नहीं मिल सकता। डॉ. वर्मा शिक्षा व समाज सेवा पर सीकर, झुंझुनूं, चूरू व नागौर सहित राज्य के कई जिलों में करोड़ों रुपए दान कर चुके। इसके अलावा वे उत्तरप्रदेश के कई जिलों में शिक्षा पर राशि खर्च कर चुके।
जिले के दुराना गांव निवासी ओमप्रकाश शर्मा अमरीका के न्यूयार्क सिटी में 28 वर्ष से रह रहे हैं। वे वहां हर राजस्थानी की निशुल्क मदद करते हैं। साथ ही जब भी झुंझुनूं आते हैं सरकारी स्कूल व गांवों पर धन खर्च करते हैं। उनके रिश्तेदार संजय शर्मा ने बताया कि दसवीं तक की शिक्षा गांव व आस-पास के विद्यालयों से की। पंजाब के लुधियाना से एमबीबीएस की डिग्री ली।
शर्मा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं जिनके पास किसी समय दो जून खाने को रोटी नहीं थी। दसवीं कक्षा में फीस भरने को पैसे नहीं थे लेकिन इन्होंने कभी हार नहीं मानी। यहां अपने पैतृक जिले के दोरादास गांव के स्कूल में अभी इन्होंने दस लाख से अधिक के विकास कार्य करवाए हैं। पाकिस्तान में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए दस लाख रुपए की मदद की थी।
पंचायत समिति की केहरपुरा कलां ग्राम पंचायत के मटाणा निवासी और बेगराज सिंगाठिया ने विदेश में रहते हुए भी मातृभूमि से लगाव रखा। वह दुबई में रह कर झुंझुनूं के जरूरतमंद लोगों की मदद कर रहे हैं। बतौर सिंगाठिया, बचपन गरीबी में बीता तो जरूरतमंद की सदैव मदद करने का मन रहा। पहले आर्थिक स्थिति कमजोर थी तो ज्यादा मदद नहीं पहुंचा पाते थे। करीब सात साल पहले दुबई जाना हुआ, जहां निर्माण कार्यों के ठेके लेने शुरू किए। काम अच्छा चला तो जरूरतमंद की मदद में भी हाथ खुलने लगा। उन्होंने बताया कि वे गत छह-सात साल में जरूरतमंद की मदद में 20 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर चुके हैं।
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बेगराज ने पत्रिका की मुहिम से जुडक़र भी पीड़ितों की मदद की। उन्होंने कोविड में अनाथ हुए नेपाल के बच्चों के लिए 51 हजार, केहरपुरा कलां के सुधानगर के बीमार आदित्य लोहिया के इलाज के लिए 50 हजार रुपए, भुकाना के जोहड़ में दो बच्चों की मौत के बाद परिवारजन को 51 सौ रुपए और एक माह के राशन की मदद की थी।