झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में हुआ जन्म
झुंझुनूं से करीब बारह किलोमीटर दूर लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को जन्मे मेहदी हसन का परिवार संगीतकारों का परिवार रहा है। कलावंत घराने में उनसे पहले की 15 पीढ़िया भी संगीत से ही जुड़ी हुई थीं। संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से ली। दोनों ही ध्रुपद के अच्छे जानकार थे। भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया।
मैकेनिक के रूप में भी काम किया
पाक में उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम की और बाद में मोटर मेकैनिक का भी काम उन्होंने किया। लेकिन संगीत को लेकर जो जुनून उनके मन में था, वह कम नहीं हुआ। उन्होंने पाकिस्तान के कराची शहर के एक अस्पताल में 13 जून 2012 को अंतिम सांस ली थी। उस समय उनकी उम्र 84 वर्ष थी। मेहदी का ज्यादातर समय पाकिस्तान में गुजरा, मगर राजस्थान के लूणा गांव के लिए उनका दिल हमेशा धड़कता रहा।
कार्यक्षेत्र
1950 का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहदी हसन के लिए अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था। एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। उसके बाद मेहदी हसन ने मुड़ कर नहीं देखा। फिर तो फिल्मी गीतों और गजलों की दुनिया में वो छा गए।
गले में कैंसर था
वर्ष 1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना लगभग छोड़ दिया था। उनकी अंतिम रिकार्डिंग 2010 में सरहदें नाम से आई, जिसमें फऱहत शहज़ाद की लिखी “तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है” की रिकार्डिंग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की। उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकार्डिंग मुंबई में की। इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।
हर महफिल में उनका जादू
संगीत की दुनिया में गजल गायकी का अपना अलग ही एक अंदाज रहा है। जब गजल की महफिलें लगती हैं तो उसका एक अलग ही जादू देखने को मिलता है।