कुछ करने का जज्बा हो तो कठिन से कठिन मंजिल भी पाई जा सकती है। ऐसी ही हिम्मत दिखाई यहां की आबिदा कुरैशी ने। महिला एवं बाल विकास में बतौर कार्यकर्ता आबिदा जब 2015 में केंद्रीय बैंक में रुपए जमा कराने गई तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा और परेशानी अलग। इस परेशानी को समझ आबिदा ने महिलाओं का अपना बैंक खोलने की ठान ली। 22 मई 2015 को बैंक (अमृता बहुउद्दशीय प्राथमिक सोसायटी) खोल लिया। जिसका आज नौ करोड़़ रुपए का वार्षिक लेन-देन है। वर्तमान में इस अमृता बहुद्देशीय प्राथमिक सोसायटी से 23 हजार समूहों की दो लाख 30 हजार से ज्यादा महिलाएं अपना लेन-देने और पैसा जमा कराने का काम कर रही हैं।
झिझक ब्रेकडाउन: हौसलों को दी उड़ान
रोडवेज बसों को चलाने और सुधारने के नाम पर भले सामान्य महिला घबरा जाती हो, लेकिन सीकर डिपो में 20 साल से महिलाएं बसों की मरम्मत कर पुरुषों के आधिपत्य समझे वाले काम को बखूबी निभा रही हैं। यहां बतौर कर्मचारी नियुक्त राधा कंवर रोडवेज बस की मरम्मत से लेकर सीट सिलने तक का काम करती है।
रोडवेज बसों को चलाने और सुधारने के नाम पर भले सामान्य महिला घबरा जाती हो, लेकिन सीकर डिपो में 20 साल से महिलाएं बसों की मरम्मत कर पुरुषों के आधिपत्य समझे वाले काम को बखूबी निभा रही हैं। यहां बतौर कर्मचारी नियुक्त राधा कंवर रोडवेज बस की मरम्मत से लेकर सीट सिलने तक का काम करती है।
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जयपुर। इस नौकरी में धैर्य की जरूरत होती है। हमें हर तरह के लोगों से मिलना होता है। कई बार गलती करने के बावजूद लोग हम पर ही चिल्लाते हैं, लेकिन उन्हें कैसे संभालें यही बड़ी बात है। मुझे नौकरी करते हुए सत्रह साल हो गए हैं। पहले थाने में लगी हुई थी अभी टै्रफिक पुलिस में हूं। हमारे समाज में महिलाओं के लिए पुलिस की नौकरी करना कठिन तो है लेकिन नामुमकिन नहीं। पहले समाज के लोग बहुत कुछ बोलते थे तो बुरा लगता था। आज अच्छा लगता है जब कोई पूछता है कि क्या करती हूं तो आत्मविश्वास के साथ अपनी नौकरी के बारे में बताती हूं। सुबह आठ बजे से बारह बजे और शाम चार बजे से आठ बजे तक नौकरी करती हूं।