किन्नू के बगीचे के लिए यहां की जलवायु, पानी की उपलब्धता काफी उपयुक्त है। पहले करीब पांच सौ पौधे लगाए थे, जो 4 साल से अच्छी पैदावार दे रहे हैं। करीब 4 साल पहले 2 हजार पौधे और लगा दिए, जो अगली साल तक पैदावार देने लगेंगे। दो साल से लगातार मौसम में बदलाव होने से पैदावार प्रभावित हुई है। रणवां अपने खेत में पेड़ों के बीच दूसरी फसलें भी ले रहे हैं। एक पेड़ से एक हजार रुपए के किन्नू मिलते हैं। किन्नू की ज्यादा सार-संभाल नहीं करनी पड़ती।
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रणवां ने बताया कि बागवानी में समय-समय पर बदलाव किए गए। खेत में अनार, बील व दूसरे फलदार पौधे भी लगा चुके हैं। जिससे ज्यादा पैदावार नहीं मिली। इस कारण पेड़ों को निकलवाकर 8 साल पहले किन्नू के पौधे लगाए।
खेत में देशी खाद, ड्रिप सिस्टम
रणवां ने करीब 80 बीघा में किन्नू व दूसरे फलों का बगीचा लगा रखा है, जिसकी सार-संभाल के लिए श्रमिक भी लगा रखे हैं। उन्होंने बताया कि पानी की कमी के चलते पूरे खेत में ड्रिप सिस्टम लगाया गया ताकि पानी की बचत हो सके। वहीं पेड़ों और खेती में देशी खाद ही काम में लेते हैं। रणवां ने बताया कि पेड़ों के मूंग, बाजरा, ग्वार, सरसों, चना, गेंहू और सब्जी की फसल उगाते हैं। रणवां ने बताया कि उनके काम में पूर्व प्रधान पिता निहाल सिंह व मां मीरा भी सहयोग करती हैं।
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जिले में हर साल फलदार पौधों का रकबा बढ़ रहा है। सबसे ज्यादा किन्नू व मौसमी के पौधे उगाए जा रहे हैं। दोनों ही फल अच्छी पैदावार दे रहे हैं।
शीशराम जाखड़, सहायक निदेशक, उद्यान विभाग