आई थी इंदिरा गांधी तांबे की खोज यहां वर्ष 1960 से पहले से हो रही थी। तब यहां की खानें जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन थी। इसके बाद
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल)की स्थापना के बाद 9 नवंबर 1967 को खानें एचसीएल के अधीन आ गई। तांबे का खनन तेज हुआ। एचसीएल की यूनिट खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (केसीसी) की स्थापना हुई। पांच फरवरी 1975 से तांबे का उत्पादन शुरू कर दिया। इस दिन देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहंा आई। उन्होंने यह प्लांट देश को समर्पित किया। तब हर माह करीब साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे का उत्पादन होता था।
ऐसे बंद होते गए प्लांट
वर्ष 2008 तक पहले यह संयंत्र चरम पर थे। लेकिन उस दौरान तांबे की कीमत कम हो गई, लागत बढ़ गई। संयंत्र पुराने हो गए। अफसरों की गलत नीतियों के कारण यह घाटे में चलने लगा। 23 नवम्बर को स्मेल्टर प्लांट को बंद कर दिया गया। इसके बाद यह शुरू नहीं हुआ। धीरे-धीरे दोनों एसिड प्लांट, रिफाइनरी, फर्टिलाइजर प्लांट व अन्य सभी प्लांट बंद कर दिए गए।
अब यह हो रहा
केसीसी में अब माइनिंग व कंस्ट्रक्टर प्लांट को छोड़कर बाकी के प्लांट अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिए। अब यहां कच्चा माल निकलता है। उसे ट्रकों में भरकर अलग-अलग जगह रिफाइनरियों में भेज दिया जाता है।
इनका कहना है
अधिकांश कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया। अनेक रिटायर हो गए। अब नियमित कर्मचारियों की संख्या में कमी आई है। केसीसी में पानी की किल्लत है। उस किल्लत की वजह से प्लांट भी पूरे नहीं चल रहे। उत्पादन भी कम हो रहा है। कुंभाराम लिफ्ट परियोजना का पानी पर्याप्त नहीं दिया जा रहा। चंवरा गांव में लगाए गए पानी के कुएं सूख गए। इसलिए अब यहां उत्पादन कम हो रहा है। तांबा निकालकर रिफाइनरियों में भेजा जा रहा है।
-केपी बिसोई, उप महाप्रबंधक, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड, केसीसी इकाई
ऐसे बनें फिर आत्मनिर्भर
यहां तांबे के भंडार में कोई कमी नहीं आई है। अब नई तकनीक के संयंत्र लगाने की जरूरत है। जिससे कम खर्चा आए। अगर संयंत्र फिर से लगा दिए जाएं तो फिर केसीसी में दस हजार से ज्यादा कर्मचारियों को रोजगार मिल सकता है। हम तांबे में फिर से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। खेतड़ी में निकलने वाले तांबे की शुद्धता 99.5 फीसदी है।
-श्याम लाल सैनी, रिटायर्ड सीनियर तकनीशियन