scriptजब रूस व चीन से तांबा मंगवाया जाता था, तब 1975 में खेतड़ी ने देश को बना दिया था आत्मनिर्भर, अब खुद मुर्छित | kcc plant story khetri | Patrika News
झुंझुनू

जब रूस व चीन से तांबा मंगवाया जाता था, तब 1975 में खेतड़ी ने देश को बना दिया था आत्मनिर्भर, अब खुद मुर्छित

देश को तांबे में आत्मनिर्भर बनाने वाली खेतड़ी की खानों व संयंत्रों को अब संजीवनी की जरूरत है। तीन पारियों में 24 घंटे तांबे उगलने वाली मशीन अब इतिहास का हिस्सा बन गई है। वर्ष 1975 से पहले रूस, चीन व अन्य देशों से भारत तांबा मंगवाता था, तब खेतडीनगर में तांबे के स्मेल्टर प्लांट की स्थापना हुई। हर माह यहां औसत साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे की सिल्लियां तैयार हो जाती थी, यह सिलसिला 23 नवम्बर 2008 तक चला। तांबे में भारत आत्मनिर्भर होने लगा। इसके बाद सरकारी नीतियों व अफसरशाही ने इसे डुबो दिया।

झुंझुनूJun 03, 2020 / 03:48 pm

Rajesh

जब रूस व चीन से तांबा मंगवाया जाता था, तब 1975 में खेतड़ी ने देश को बना दिया था आत्मनिर्भर, अब खुद मुर्छित

जब रूस व चीन से तांबा मंगवाया जाता था, तब 1975 में खेतड़ी ने देश को बना दिया था आत्मनिर्भर, अब खुद मुर्छित


राजेश शर्मा/ हर्ष स्वामी
झुंझुनूं/ खेतड़ी. देश को तांबे में आत्मनिर्भर बनाने वाली खेतड़ी की खानों व संयंत्रों को अब संजीवनी की जरूरत है। तीन पारियों में 24 घंटे तांबे उगलने वाली मशीन अब इतिहास का हिस्सा बन गई है। वर्ष 1975 से पहले रूस, चीन व अन्य देशों से भारत तांबा मंगवाता था, तब खेतडीनगर में तांबे के स्मेल्टर प्लांट की स्थापना हुई। हर माह यहां औसत साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे की सिल्लियां तैयार हो जाती थी, यह सिलसिला 23 नवम्बर 2008 तक चला। तांबे में भारत आत्मनिर्भर होने लगा। इसके बाद सरकारी नीतियों व अफसरशाही ने इसे डुबो दिया। खुद के निजी फायदे के लिए उच्चाधिकारियों ने अविवेकपूर्ण निर्णय लिए। महंगे प्लांट लगा दिए। जिन प्लांटों की जरूरत नहीं थी, वे भी यहां लगा दिए। पुरानी तकनीक काम ली गई। आगे के 50 सालों को देखकर प्लांट नहीं लगाए गए। नतीजा यह रहा है अधिकतर प्लांट बंद हो गए। कभी 10 हजार से ज्यादा कर्मचारी व अधिकारी वाले इस प्लांट में अब करीब एक हजार कर्मचारी रह गए हैं।
#kcc jhunjhunu
आई थी इंदिरा गांधी

तांबे की खोज यहां वर्ष 1960 से पहले से हो रही थी। तब यहां की खानें जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन थी। इसके बाद
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल)की स्थापना के बाद 9 नवंबर 1967 को खानें एचसीएल के अधीन आ गई। तांबे का खनन तेज हुआ। एचसीएल की यूनिट खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (केसीसी) की स्थापना हुई। पांच फरवरी 1975 से तांबे का उत्पादन शुरू कर दिया। इस दिन देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहंा आई। उन्होंने यह प्लांट देश को समर्पित किया। तब हर माह करीब साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे का उत्पादन होता था।
#tamba project in khetri
ऐसे बंद होते गए प्लांट
वर्ष 2008 तक पहले यह संयंत्र चरम पर थे। लेकिन उस दौरान तांबे की कीमत कम हो गई, लागत बढ़ गई। संयंत्र पुराने हो गए। अफसरों की गलत नीतियों के कारण यह घाटे में चलने लगा। 23 नवम्बर को स्मेल्टर प्लांट को बंद कर दिया गया। इसके बाद यह शुरू नहीं हुआ। धीरे-धीरे दोनों एसिड प्लांट, रिफाइनरी, फर्टिलाइजर प्लांट व अन्य सभी प्लांट बंद कर दिए गए।
#tamba in khetri
अब यह हो रहा
केसीसी में अब माइनिंग व कंस्ट्रक्टर प्लांट को छोड़कर बाकी के प्लांट अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिए। अब यहां कच्चा माल निकलता है। उसे ट्रकों में भरकर अलग-अलग जगह रिफाइनरियों में भेज दिया जाता है।
#hcl news khetri
इनका कहना है
अधिकांश कर्मचारियों ने वीआरएस ले लिया। अनेक रिटायर हो गए। अब नियमित कर्मचारियों की संख्या में कमी आई है। केसीसी में पानी की किल्लत है। उस किल्लत की वजह से प्लांट भी पूरे नहीं चल रहे। उत्पादन भी कम हो रहा है। कुंभाराम लिफ्ट परियोजना का पानी पर्याप्त नहीं दिया जा रहा। चंवरा गांव में लगाए गए पानी के कुएं सूख गए। इसलिए अब यहां उत्पादन कम हो रहा है। तांबा निकालकर रिफाइनरियों में भेजा जा रहा है।
-केपी बिसोई, उप महाप्रबंधक, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड, केसीसी इकाई
# kcc plant story khetri
ऐसे बनें फिर आत्मनिर्भर

यहां तांबे के भंडार में कोई कमी नहीं आई है। अब नई तकनीक के संयंत्र लगाने की जरूरत है। जिससे कम खर्चा आए। अगर संयंत्र फिर से लगा दिए जाएं तो फिर केसीसी में दस हजार से ज्यादा कर्मचारियों को रोजगार मिल सकता है। हम तांबे में फिर से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। खेतड़ी में निकलने वाले तांबे की शुद्धता 99.5 फीसदी है।
-श्याम लाल सैनी, रिटायर्ड सीनियर तकनीशियन

Hindi News / Jhunjhunu / जब रूस व चीन से तांबा मंगवाया जाता था, तब 1975 में खेतड़ी ने देश को बना दिया था आत्मनिर्भर, अब खुद मुर्छित

ट्रेंडिंग वीडियो