यहां इतना ताम्बा है कि अगले 60 से 100 साल तक भी खनन किया जाए तो भी तांबे का भंडार खत्म नहीं हो सकता। वर्तमान में बनवास, बागेश्वर व माकड़ो की तरफ 3 से 4 किलोमीटर भूमिगत तांबे का खनन किया जा रहा है। जीरो लेवल आखिरी खनन पॉइंट है जो 370 मीटर नीचे है।
फिलहाल अंतिम 3 लेवल पर ही खनन कार्य किया जा रहा है। यहां की खदानों से निकलने वाला तांबा देश में सबसे अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष, सुरक्षा उपकरण, रेलवे, हवाई जहाज, बिजली उपकरण व वाहनों में किया जाता है।
उपभोक्ता खुद बगैर किसी सहारे के ले सकता है अपना हक
सुनारी सभ्यता में भी मिले अवशेष
सुनारी व गणेश्वर की सभ्यता में भी तांबे व लोहे के अवशेष खुदाई में मिले हैं। सुनारी सभ्यता में तांबे की कढ़ाई भी मिली है, जिसमें तांबे की गलाई होती थी इसलिए तांबे के भंडार पहले भी थे। जिनका खनन करके बर्तन भी बनाए जाते हैं।
सिंघाना में लोहे की ढलाई का कारखाना होने की सबूत भी मिले हैं जहां पर एक पहाड़ नुमा लोहे गलाने के पत्थरों का बना हुआ है। केसीसी की माइनिंग के पास पुराने खुदाई के कुएं भी मौजूद है।