इतिहास
वर्ष 1975 से पहले रूस, चीन व अन्य देशों से भारत तांबा मंगवाता था, तब खेतडीनगर में तांबे के स्मेल्टर प्लांट की स्थापना हुई। हर माह यहां औसत साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे की सिल्लियां तैयार हो जाती थीं। यह सिलसिला 23 नवम्बर 2008 तक चला। तांबे में भारत आत्मनिर्भर होने लगा। तांबे की खोज यहां वर्ष 1960 से पहले से हो रही थी। तब यहां की खानें जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन थीं। हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की स्थापना के बाद 9 नवंबर 1967 को खानें एचसीएल के अधीन आ गईं। तांबे का खनन तेज हुआ। एचसीएल की यूनिट खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (केसीसी) की स्थापना हुई। पांच फरवरी 1975 से तांबे का उत्पादन शुरू कर दिया गया। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां आईं थीं। उन्होंने यह प्लांट देश को समर्पित किया था। तब हर माह करीब साढ़े तीन हजार टन शुद्ध तांबे का उत्पादन होता था। करीब 11 हजार नियमित कर्मचारी-अधिकारी कार्यरत थे।
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यहां हैं ताम्बे के भंडार
खेतड़ीनगर, कोलिहान, सिंघाना, खेतड़ी, बनवास, चांदमारी, धानी बासरी, बनीवाला की ढाणी, ढोलामाला, अकवाली, पचेरी, रघुनाथगढ़, माकड़ो, बागेश्वर, खरखड़ा, श्यामपुरा भिटेरा, जसरापुर, मुरादपुर व भोदन इश्कपुरा।
एक्सपर्ट का कहना है कि यहां अगले सौ साल तक के लिए तांबे के भंडार हैं। नई तकनीक से खुदाई की जाए तथा नई तकनीक के प्लांट लगाए जाएं, तो धरती फिर से ताम्बे के भंडार भर सकती है। वर्तमान में कोलिहान व बनवास खान से तांबे का खनन हो रहा है।
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फैक्ट फाइल
तांबा मिला: करीब तीन हजार वर्ष पहले
तांबे की अधिकृत खोज: 1960 से पहले
शुद्ध तांबे का उत्पादन शुरू हुआ: 5 फरवरी 1975
कहां कितना प्रतिशत तांबा
खेतड़ी: 1.13 फीसदी
कोलिहान: 1.35 फीसदी
बनवास: 1.69 फीसदी
चांदमारी: 1.03 फीसदी