माथा टेक कर शुरू करते हैं शुभ काम
झांसी के मऊरानीपुर तहसील में कुतिया महारानी का मन्दिर बना हुआ है। तहसील मऊरानीपुर के गांव रेवन और ग्राम ककवारा की सीमा पर यह मंदिर स्थापित है। गांव का हर शख्स इस मंदिर में माथा जरूर टेकता है। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं।
झांसी के मऊरानीपुर तहसील में कुतिया महारानी का मन्दिर बना हुआ है। तहसील मऊरानीपुर के गांव रेवन और ग्राम ककवारा की सीमा पर यह मंदिर स्थापित है। गांव का हर शख्स इस मंदिर में माथा जरूर टेकता है। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं।
गांव के लोगों का मानना है, इस मंदिर को सालों पहले स्थापित किया गया था। गांव के लोग यहां रोज जल चढ़ाते हैं। कुतिया महारानी को भोग लगाने के बाद उनका आशीर्वाद लेते हैं। यह सुनकर हो सकता है कुछ पल के लिए आप हैरत में आ जाएं, लेकिन इससे पहले आप इसके इतिहास के बारे में जान लें।
कुतिया महारानी का इतिहास
कुतिया माता मंदिर के बारे में गांव के लोगों ने बताया, जिस घर में भी कार्यक्रम होता था, ये कुतिया वहां पर खाना खाने पहुंच जाया करती थी। एक बार रेवन गांव में कार्यक्रम हुआ और कुतिया वहां पहुंची तो खाना खत्म हो चुका था। कुतिया को वहां खाना नहीं मिला। इस वजह से वह भूख से तड़प कर मर गई।”
कुतिया माता मंदिर के बारे में गांव के लोगों ने बताया, जिस घर में भी कार्यक्रम होता था, ये कुतिया वहां पर खाना खाने पहुंच जाया करती थी। एक बार रेवन गांव में कार्यक्रम हुआ और कुतिया वहां पहुंची तो खाना खत्म हो चुका था। कुतिया को वहां खाना नहीं मिला। इस वजह से वह भूख से तड़प कर मर गई।”
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“गांव वालों को जब इसकी जानकारी मिली तो सभी को बहुत दुख हुआ। दोनों गांव वालों ने मिलकर कुतिया को दोनों गांवों की सीमा पर दफना दिया। कुछ दिनों बाद इस जगह पर सफेद चबूतरा बनवाया गया और कुतिया की प्रतिमा लगवा दी गई। तब से सब लोग कुतिया महारानी की पूजा करने लगे और आज तक यह परंपरा चल रही है।” कई गांवों के लोगों की जुड़ी हुई है आस्था
आज अगर गांव में कोई कार्यक्रम होता है तो सबसे पहले कुतिया महारानी को ही भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि दोनों गांवों के लोग मांगलिक कार्यक्रमों के दौरान कुतिया महारानी के सामने एक निमंत्रण के तौर पर का कार्ड चढ़ा जाते हैं। इस मंदिर से कई गांवों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
आज अगर गांव में कोई कार्यक्रम होता है तो सबसे पहले कुतिया महारानी को ही भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि दोनों गांवों के लोग मांगलिक कार्यक्रमों के दौरान कुतिया महारानी के सामने एक निमंत्रण के तौर पर का कार्ड चढ़ा जाते हैं। इस मंदिर से कई गांवों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।