मरीजों की दें सूचना इस संबंध में अपर निदेशक डा. सुमन बाबू मिश्रा ने कहा कि सभी को टीबी कार्यक्रम के प्रति जागरूक होना है। कोशिश करें कि टीबी जैसी बीमारी को सही इलाज के साथ पहले चरण में ही रोक लें। इसे एक्सडीआर और एमडीआर में परिवर्तित न होने दें। टीबी को रोकने के लिए सभी प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में आने वाले मरीजों की सूचना जिला क्षयरोग अस्पताल में जरूर दें।
इस तरह दी जाएगी दवा टीबी एंड चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डा. मधुरमय शास्त्री ने बताया कि यह बेडाकुलीन दवा यूएसए खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग से अप्रूवड है। यह दवा नए प्री एक्सडीआर और एक्सडीआर मरीजों को टीबी की अन्य दवाओं के साथ छह माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाएगी। इस दवा की 200 एमजी की गोली शुरुआत के दो हफ्ते में हफ्ते में एक बार दी जाएगी एवं उसके बाद 22 हफ्ते तक सप्ताह में तीन बार दी जाएगी। 24 हफ्ते के बाद यानी 6 माह के बाद यह दवा बंद कर दी जाएगी व जो टीबी की अन्य दवा दी जा रही हैं, वह अपने निश्चित समय के लिए चलती रहेंगी। इस दवा की एक गोली की लागत कम से कम 3000 रूपये है, इसके चलते यह दवा सिर्फ सरकारी अस्पतालों में पूर्णरूप से निःशुल्क उपलब्ध करायी जाएगी। जबकि प्राइवेट अस्पताल व मेडिकल स्टोर में दवा की बिक्री नहीं होगी।
मरीजों का इलाज हो जाता है कठिन टीबी के मरीज तबीयत में सुधार के बाद इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। बावजूद इसके बार-बार इलाज छोड़ने से मरीज में टीबी दवा का रजिस्टेंट बन जाता है। नतीजतन टीबी की सामान्य दवा मरीज पर असर नहीं करती हैं। ऐसे में मरीज एमडीआर और धीरे-धीरे एक्सडीआर की जद में आ जाता है, जिससे इन मरीजों का इलाज कठिन होता है और दो साल तक या उससे अधिक इलाज चलता है।
इसलिए की गई शुरूआत जिला क्षय रोग अधिकारी बताते हैं कि इलाज बीच में छोड़ने वालों की संख्या काफी है। मरीजों को राहत देने के लिए बेडाकुलीन को कोर्स जोड़ा जा रहा है। उन्होंने बताया कि पुरानी दवा के कम असरकारक होने की वजह से नयी दवा बेडाकुलीन की शुरूआत की गयी है। इस अवसर पर अपर निदेशक के साथ, मेडिकल कॉलेज के सीएमएस, प्रधानाचार्या, पैरामेडिकल के डायरेक्टर, जिला क्षयरोग अधिकारी, टीबी एंड चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष, डब्ल्यूएचओ परामर्शदाता व अन्य स्टाफ मौजूद रहे।