झालावाड़

अलवर पद्धति से स्वयं बीज तैयार कर प्याज से लाखों कमा रहे युवा किसान

रटलाई क्षेत्र के कई गांवों में खरीफ सीजन में प्याज बुवाई की जाती है। जिससे किसानों की आय बढ़ रही है। जिसके चलते कई किसान बाजारों में प्याज का बीज लाकर उसकी बुवाई करने के बाद उससे प्याज पैदा करते है।

झालावाड़Nov 25, 2024 / 03:18 pm

Kamlesh Sharma

रटलाई क्षेत्र के कई गांवों में खरीफ सीजन में प्याज बुवाई की जाती है। जिससे किसानों की आय बढ़ रही है। जिसके चलते कई किसान बाजारों में प्याज का बीज लाकर उसकी बुवाई करने के बाद उससे प्याज पैदा करते है। लेकिन क्षेत्र की ग्राम पंचायत पाटलियाकुल्मी के किसानों को बाजारों से मंहगें दामों में बीज लाने की जरूरत नहीं होती है। गांव पाटलिया कुल्मी में कई किसान स्वयं खरीफ में बुवाई करने के लिए बीज स्वयं तैयार कर रहे है।
जिसके तहत स्वयं प्याज की गंठिया तैयार करते है और खरीफ( अगस्त – सितंबर) मौसम में गंठिया लगाकर प्याज फसल केवल 65-70 दिन में तैयार करके अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे है। जानकारी के अनुसार जिले में पिछले कई सालों से किसान खरीफ में भी प्याज की बुवाई कर अच्छी आमदनी कर रहे है।
प्याज एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है प्रदेश में अधिकाश किसान रबी में प्याज का उत्पादन लेते है। लेकिन कुछ वर्षों से किसानों का रुझान खरीफ प्याज की ओर बढ़ा है। गर्मी का प्याज ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता है। इससे खरीफ में उत्पादन कर प्याज के अच्छे भाव किसान को मिल रहे है।
गांव के किसान विष्णु प्रसाद पाटीदार,दिनेश पाटीदार,श्याम बाबू पाटीदार आदि ने बताया कि पाटलियाकुल्मी गांव के अधिकांश किसान अलवर पद्धति के आधार पर स्वयं प्याज की गंठिया तैयार करते है और उन गंठिया को खरीफ मौसम में लगाकर कम समय में प्याज तैयार कर रहे है। अलवर जिले के साथ साथ झालावाड़ जिले में भी खरीफ प्याज उत्पादन के सकारात्मक परिणाम सामने आए है।
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लगभग पूरा गांव करता है प्याज की खेती

क्षेत्र के कई गांवों में प्याज की बुवाई की जाती है जिसमें रबी व खरीफ दोनों में ही बहुत मात्रा में प्याज की फसल होती है । लेकिन क्षेत्र का एक मात्र गांव पाटलिया कुल्मी है जहां पर पूरे गांव के किसान प्याज की खेती बड़ी मात्रा में करने लग गए है । विभाग के अनुसार खरीफ का रकबा 300 बीघा है। गांव में प्रवेश करते ही खेतों में प्याज की फसल दिखाई देने लगती है। किसी भी किसान के खेत पर जाओं रबी का सीजन हो या खरीफ का खेतों में प्याज नहीं बोया तो क्या नहीं बौया।
किसान साल में दो बार प्याज की उपज लेकर मालामाल हो रहे है। कई किसानों की आर्थिक व सामाजिक हालत में सुधार भी आने लगा है । प्याज एक नगदी फसल है । जब मण्ड़ी में बेचों तब ही रूपया जेब में आ जाता है। जिसके कारण सालभर जेब रूपयों से गरम रहता है।

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