Jhalawar news : मिश्रोली करीब आधा दर्जन से ज्यादा बेसाल्ट की खदानें है जिनकी लीज खनन विभाग ने मेसेनरी के नाम से जारी कर रखी है। इन्हीं खदानों से रात-दिन बेसाल्ट निकाला जा रहा है। इसकी मांग वर्तमान में जबर्दस्त है। यह ज्यादातर एक्सपोर्ट किया जा रहा है। वहीं आलीशान इमारतों, भव्य फव्वारों, गार्डन आदि में भी इसकी मांग रहती है। साथ ही इस पत्थर के ब्लॉक्स बनाकर भी चांदी कूटी जा रही है।
झालावाड़ जिले में मिश्रोली कस्बे के आसपास कुदरत का ऐसा खजाना है जो पूरे प्रदेश में सिर्फ यहीं मिलता है। वैसे तो इस खजाने को संरक्षित करना था लेकिन खनन विभाग इसे खोदकर बेच रहा है और वो भी कोडि़यों के भाव। जी हां, यहां बात हो रही है बेसाल्ट की चट्टानों की। वैसे तो इसकी मांग ग्रेनाइट से भी ज्यादा है लेकिन इसे मेसेनरी स्टोन (चुनाई पत्थर) के नाम से बेचा जा रहा है।
मिश्रोली करीब आधा दर्जन से ज्यादा बेसाल्ट की खदानें है जिनकी लीज खनन विभाग ने मेसेनरी के नाम से जारी कर रखी है। इससे सरकार को करोड़ों रुपए का चूना रॉयल्टी के नाम पर लग रहा है।
जानकारी के अनुसार मिश्रोली में बेसाल्ट की खदानें खाते की जमीनों पर है। जिनको खनन विभाग ने लीज पर लेकर खदानें आवंटित कर रखी है। इन्हीं खदानों से रात-दिन बेसाल्ट निकाला जा रहा है। इसकी मांग वर्तमान में जबर्दस्त है। यह ज्यादातर एक्सपोर्ट किया जा रहा है। वहीं आलीशान इमारतों, भव्य फव्वारों, गार्डन आदि में भी इसकी मांग रहती है। साथ ही इस पत्थर के ब्लॉक्स बनाकर भी चांदी कूटी जा रही है।
बेसाल्ट का एक-एक पत्थर काम आता है। चट्टानें निकालने के बाद टूटने वाले पत्थर से गिट्टी और चुनाई के काम आने वाली रेत भी बनाई जा रही है। जिले में बेसाल्ट की रॉयल्टी मेसेनरी पत्थर के नाम से 40 रुपए प्रति टन निर्धारित कर रखी है जबकि इसी पत्थर की खदानों को ग्रेनाइट के नाम से लीज पर दिया जाए तो इसकी रॉयल्टी करीब 300 रुपए प्रति टन तक मिलेगी लेकिन सरकार को इसकी चिंता ही नहीं है।
झालावाड़ जिले के डग भवानी मंडी क्षेत्र में मिश्रौली गांव के आसपास वर्ष 2018 और उससे पूर्व में मेसेनरी स्टोन के नाम पर आवंटित खदानों से लोग ग्रेनाइट जैसा कीमती पत्थर निकालते रहे और खान विभाग को भनक तक नहीं लगी। लीज का आवंटन करने के बाद विभाग ने इस इलाके से ऐसा मुंह मोडा की पलट कर दोबारा यहां नहीं देखा। मेसेनरी स्टोन के नाम पर आवंटित की गई इन खदानों से लोग बड़े-बड़े ब्लॉक निकलते रहे तथा सरकार को मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी चुका कर चूना लगाते रहे।
सारे मामले में कुछ समय पहले सरकारी महकमों में कुछ हलचल हुई और इन बेसाल्ट की चट्टानों को आखिरकार अब खनिज विभाग ने ग्रेनाइट मान लिया है तथा सरकार को पत्र लिखा है जिसमें इस पत्थर को ग्रेनाइट घोषित करने की बात कही गई है लेकिन मजे की बात यह है कि अभी भी लोग इन खदानों से पत्थर निकाल रहे हैं और मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी चुका रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि ऐसे खदान मालिक और व्यापारी जिन्होंने इस पत्थर की परख कर ली थी वह लंबे समय से इसको दूसरे स्थान पर ले जाकर ग्रेनाइट के तौर पर तैयार करके महंगे दामों पर बेचते रहे। विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेसेनरी स्टोन की रॉयल्टी 35 प्रति टन है जबकि ग्रेनाइट की रॉयल्टी 250 प्रति टन है। जानकारों की माने तो पूरे इलाके में चलने वाली खदानों से अब तक लोग लाखों टन पत्थर निकल चुके हैं जिसके रॉयल्टी के फर्क को यदि देखें तो सरकार को करोड़ों का चूना लग चुका है।
विभाग और सरकार की लापरवाही
मामला किसी एक अधिकारी या एक सरकार के कार्यकाल से जुडा नहीं है। खदानों के आवंटन से लेकर अब इस पत्थर को ग्रेनाइट माने जाने तक के समय अंतराल में विभाग के कई अधिकारी बदले हैं तो सरकारें भी बदली है। ऐसे में यहां सिर्फ और सिर्फ लापरवाही सामने आती है की ना तों विभाग के अधिकारियों ने कभी इस तरफ ध्यान दिया ना ही सरकार के तौर कभी इन बेसाल्ट माइंसों का रिव्यू करवाया गया।सरकार को पत्र लिख दिया
झालावाड़ के सहायक खनिज अभियंता कहते हैं कि जैसे ही मामला प्रकाश में आया तो उन्होंने मिनरल एड के लिए सरकार को पत्र लिख दिया है। किसी भी तरह की पत्थर की खदान से मेसेनरी स्टोन निकलता है तो इसकी रायल्टी 35 प्रति टन होती है, जबकि बड़े ब्लॉक की रॉयल्टी उस पत्थर के प्रकार के आधार पर अलग-अलग होती है। बेसाल्ट की इन खदानों में निकलने वाले बड़े ब्लॉक की रायल्टी 250 रुपए प्रति टन है। अब यहां निकलने वाले बड़े ब्लॉकों की रॉयल्टी इसी हिसाब से वसूली जाएगी।इंटेक की 150 भू विरासत सूची में
मिश्रौली और उसके आसपास के क्षेत्र में बैसाल्ट की चट्टानें जियो साइट के रूप में विकसित होगी। इन्हें इंटेक की 150 भू विरासत सूची में शामिल किया गया है। मिश्रोली में मिलने वाले पत्थरों की खासियत यह है कि यहां पर खड़े और आड़े दोनों ही प्रकार के पत्थर मिलते हैं। इनका लम्बाई 15 फीट तक है, जो देश में चुनिंदा स्थानों पर ही देखने को मिलता है। इतनी लम्बी चट्टानें और पत्थर देश में अंधेरी, आदिलाबाद, कोल्हापुर, पर्वतमाला क्षेत्र और मध्यप्रदेश के देवास के बंगार में ही मिलते हैं। विश्व में ये अमेरिका, इजराइल, हांगकांग, आस्ट्रेलिया, जापान में देखने को मिले हैं। पत्थरों को खनिज विभाग भवन निर्माण स्टोन की श्रेणी में मानता है। इनका निर्माण साढ़े छह करोड़ साल पहले माना जा रहा है।ज्वालामुखी के लावा से बनी
विशेषज्ञों के अनुसार बेसाल्ट की चट्टानें ज्वालामुखीय चट्टानें हैं। इनका निर्माण ज्वालामुखियों से निकलने वाले लावा के कारण हुआ है। ज्वालामुखी के फटने के बाद जब उनका लावा तेजी से धरती की सतह पर फैला। धरती के संपर्क में आने के बाद वह जब तेजी से ठंडा हुआ तो इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप जमे हुए लावा में दरारें पड़ गई। इस कारण ये चट्टानें इन आकर्षक आकृतियों में दिखाई देती हैं। कहीं यह स्तंभाकार नजर आती है तो कहीं शतकोणीय संरचनाएं दिखती हैं। मिश्रोली क्षेत्र में बेसाल्ट की चट्टानें है। इस क्षेत्र में मेसनरी स्टोन भी बहुतायत में है। यहां खदानें मेसेनरी के नाम से ही आवंटित की गई है। हालांकि सरकार को बार-बार प्रस्ताव बनाकर देने के बाद अब इन खानों को ग्रेनाइट के नाम से आंवटित करने के प्रस्तावों को मंजूरी मिल चुकी है। अब नए आवंटन ग्रेनाइट के नाम से ही होंगे। इससे सरकार को अच्छी राॅयल्टी मिल सकेगी।
देवीलाल बंशीवाल, सहायक खनिज अभियंता, झालावाड़