झालावाड़. एसआरजी अस्पताल के सर्जरी विभाग में मरीजों को विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं नहीं मिल पा रही है। परेशानी का कारण यह है कि सर्जरी विभाग की प्रथम यूनिट में एक ही सर्जन है। ऐसे में प्रथम यूनिट में आने वाले एमरजेंसी मरीजों के अकेले ऑपरेशन भी करते हंै। उसके बाद ओपीडी में आने वाले मरीजों को देखते हैं। ऐसे में ज्यादा समय लग जाता है। ऐसे सुनेल, डग, मनोहरथाना से जिला मुख्यालय पर सर्जन से परामर्श लेने वाले मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
तीन दिन ज्यादा समस्या-
शुक्रवार, रविवार, सोमवार को सर्जरी विभाग की प्रथम यूनिट में एक ही सर्जन के होने से इन दिनों में यूनिट पूरी तरह से एमबीबीएस व जेआर के भरोसे ही रहती है। शुक्रवार को अकलेरा से आए कृष्णमोहन ने बताया कि साधारण चिकित्सक तो हमारे यहां भी बैठते हैं, हम उन्हें तो दिखा चुके हैं। कई दिनों से पेटदर्द की परेशानी है। सुना है कि मेडिकल कॉलेज में अच्छे सर्जन है, लेकिन यहां तो एबीबीएस करने वाले छात्र ही बैठे हैं। ऐसे में अकलेरा से यहां आने का फायदा नहीं मिला। यहां ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि सातों दिन सर्जन मौजूद रहे ताकि ग्रामीण क्षेत्रों सहित मध्यप्रदेश से आने वाले मरीजों को परेशानी नहीं हो। वहीं सोयत से आने वाले एक अन्य मरीज रामप्रसाद ने बताया कि पहले पेट की सोनोग्राफी करवाई थी, पंाच दिन की दवाई दी थी, आज दिखाने आए लेकिन यहां बड़े डॉक्टर साहब तो बैठे ही नहीं है।
तीन दिन ज्यादा समस्या-
शुक्रवार, रविवार, सोमवार को सर्जरी विभाग की प्रथम यूनिट में एक ही सर्जन के होने से इन दिनों में यूनिट पूरी तरह से एमबीबीएस व जेआर के भरोसे ही रहती है। शुक्रवार को अकलेरा से आए कृष्णमोहन ने बताया कि साधारण चिकित्सक तो हमारे यहां भी बैठते हैं, हम उन्हें तो दिखा चुके हैं। कई दिनों से पेटदर्द की परेशानी है। सुना है कि मेडिकल कॉलेज में अच्छे सर्जन है, लेकिन यहां तो एबीबीएस करने वाले छात्र ही बैठे हैं। ऐसे में अकलेरा से यहां आने का फायदा नहीं मिला। यहां ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि सातों दिन सर्जन मौजूद रहे ताकि ग्रामीण क्षेत्रों सहित मध्यप्रदेश से आने वाले मरीजों को परेशानी नहीं हो। वहीं सोयत से आने वाले एक अन्य मरीज रामप्रसाद ने बताया कि पहले पेट की सोनोग्राफी करवाई थी, पंाच दिन की दवाई दी थी, आज दिखाने आए लेकिन यहां बड़े डॉक्टर साहब तो बैठे ही नहीं है।
ऐसे होती है ओपीडी प्रभावित
प्रथम यूनिट में एक मात्र सर्जन डॉ. बी.सी. मेवाडा के होने से वे राउंड भी करते हैं, इमरजेंसी ऑपरेशन भी करते हैं। ऐसे में ओपीडी पूर्णतया प्रभावित रहती है। वहीं अन्य विभाग में तो पीजी रेजीडेंट के होने से इतनी परेशानी नहीं होती है, लेकिन सर्जरी विभाग में पीजी रेजीडेंट नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है।
प्रथम यूनिट में एक मात्र सर्जन डॉ. बी.सी. मेवाडा के होने से वे राउंड भी करते हैं, इमरजेंसी ऑपरेशन भी करते हैं। ऐसे में ओपीडी पूर्णतया प्रभावित रहती है। वहीं अन्य विभाग में तो पीजी रेजीडेंट के होने से इतनी परेशानी नहीं होती है, लेकिन सर्जरी विभाग में पीजी रेजीडेंट नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है।
मेडिकल कॉलेज में देख रहे छात्र-
सर्जरी विभाग की विडंबना यह है कि यहां मरीज को एमडी या मेडिकल ऑफिसर देखता है। उसके बाद विशेषज्ञ से परामर्श व अन्य जांचों के लिए मेडिकल कॉलेज में रैफर कर देते हैं, लेकिन यहां एमबीबीएस के इंटर्न छात्र उन्हें देखते है। ऐसे में उन्हें पता नहीं कि कौनसी जांच करवानी है क्या करवाना है। वह वही दवाई फिर से लिख देते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के चिकित्सक ने लिख रखी है। यहां आकर भी मरीज फिर से वही दवाई लेकर गांव चला जाता है। ऐसे में ओपीडी में आने वाले करीब 200-250 मरीज निराश ही लौट रहे हैं।
सर्जरी विभाग की विडंबना यह है कि यहां मरीज को एमडी या मेडिकल ऑफिसर देखता है। उसके बाद विशेषज्ञ से परामर्श व अन्य जांचों के लिए मेडिकल कॉलेज में रैफर कर देते हैं, लेकिन यहां एमबीबीएस के इंटर्न छात्र उन्हें देखते है। ऐसे में उन्हें पता नहीं कि कौनसी जांच करवानी है क्या करवाना है। वह वही दवाई फिर से लिख देते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों के चिकित्सक ने लिख रखी है। यहां आकर भी मरीज फिर से वही दवाई लेकर गांव चला जाता है। ऐसे में ओपीडी में आने वाले करीब 200-250 मरीज निराश ही लौट रहे हैं।
ये हो सकता है समाधान-
मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग की शेष तीन यूनिट में पर्याप्त विशेषज्ञ हैं, ऐसे में इन यूनिट से दो प्रोफेसर व सहायक प्रोफेसरों को यूनिट प्रथम में लगाया जा सकता है। इससे यहां आने वाले मरीजों को भी हर समय परामर्श मिल सकेगा तो वह भर्ती भी कर सकेंगे। यहां द्वितीय यूनिट में प्रो. जी.एल. दशोरा, सहायक आचार्य डॉ. रेखा पाटीदार, डॉ. हुकमचन्द मीणा, तीसरी यूनिट में डॉ. अशोक शर्मा एचओडी, डॉ. अखिलेश,डॉ.आर.पी. मीणा, चौथी यूनिट मेें डॉ.संजय पोरवाल, सह आचार्य डॉ.योगीराज नैनपुरिया, डॉ. शकिल खान आदि हंै। इन सर्जन में से किसी भी दो को प्रथम यूनिट में लगाकर फिलहाल नए सर्जन आने तक कमी को पूरा किया जा सकता है। ताकि ओपीडी में आनेवाले मरीजों को सही परामर्श मिल सके।
मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग की शेष तीन यूनिट में पर्याप्त विशेषज्ञ हैं, ऐसे में इन यूनिट से दो प्रोफेसर व सहायक प्रोफेसरों को यूनिट प्रथम में लगाया जा सकता है। इससे यहां आने वाले मरीजों को भी हर समय परामर्श मिल सकेगा तो वह भर्ती भी कर सकेंगे। यहां द्वितीय यूनिट में प्रो. जी.एल. दशोरा, सहायक आचार्य डॉ. रेखा पाटीदार, डॉ. हुकमचन्द मीणा, तीसरी यूनिट में डॉ. अशोक शर्मा एचओडी, डॉ. अखिलेश,डॉ.आर.पी. मीणा, चौथी यूनिट मेें डॉ.संजय पोरवाल, सह आचार्य डॉ.योगीराज नैनपुरिया, डॉ. शकिल खान आदि हंै। इन सर्जन में से किसी भी दो को प्रथम यूनिट में लगाकर फिलहाल नए सर्जन आने तक कमी को पूरा किया जा सकता है। ताकि ओपीडी में आनेवाले मरीजों को सही परामर्श मिल सके।
पता करेंगे क्या परेशानी है-
पता करेंगे सर्जन क्यों नहीं बैठ रहे हैं, जो भी होगा समाधान करवाया जाएगा। सही है ग्रामीण दूर से आते हैं तो परेशानी तो होती है।
डॉ.आर.के.आसेरी, डीन मेडिकल कॉलेज, झालावाड़
चिकित्सकों की कमी सभी यूनिट में है, उसी दिन वार्ड व कोई इमरजेंसी आने पर सीनियर फैकल्टी के वहां जाने पर ओपीडी में तो परेशानी होती है। हमारे विभाग में पीजी भी नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है। फिर भी जो भी होगा समाधान करेंगे।
डॉ. अशोक शर्मा, विभागाध्यक्ष सर्जरी विभाग, मेडिकल कॉलेज झालावाड़
पता करेंगे सर्जन क्यों नहीं बैठ रहे हैं, जो भी होगा समाधान करवाया जाएगा। सही है ग्रामीण दूर से आते हैं तो परेशानी तो होती है।
डॉ.आर.के.आसेरी, डीन मेडिकल कॉलेज, झालावाड़
चिकित्सकों की कमी सभी यूनिट में है, उसी दिन वार्ड व कोई इमरजेंसी आने पर सीनियर फैकल्टी के वहां जाने पर ओपीडी में तो परेशानी होती है। हमारे विभाग में पीजी भी नहीं होने से परेशानी ज्यादा आती है। फिर भी जो भी होगा समाधान करेंगे।
डॉ. अशोक शर्मा, विभागाध्यक्ष सर्जरी विभाग, मेडिकल कॉलेज झालावाड़