यहां भूसे को कम्प्रेस कर ब्लॉक्स बनाकर गुजरात के जामनगर भेजा जाता है। यहां रिलायंस कंपनी देश के अलग-अलग प्लांटों में मांग के अनुरूप सप्लाई करती है। कोयला महंगा होने के कारण देश के कई प्लांटों में इस बायो फ्यूल का उपयोग हो रहा है। फिलहाल इसका उपयोग 5% है, लेकिन अगले 5 वर्षों में इसे बढ़ाकर 20% होने की संभावना है। सरकार बायो फ्यूल को बढ़ावा देने के लिए यह प्लांट लगाने के लिए 30 प्रतिशत सब्सिडी भी दे रही है।
प्लांट लगने के बाद किसानों की आय दोगुनी
किसान पहले भूसे को बिचौलिए को 100 से 150 रुपए प्रति क्विंटल में बेच रहे थे। प्लांट लगने के बाद भूसा 325 रुपए प्रति क्विंटल दर से किसान बेच रहे हैं। प्रति बीघा 5 से 6 क्विंटल भूसे का उत्पादन होने से किसानों को 2 हजार रुपए बीघा की अतिरिक्त आय होने लगी है।
कोयले की तुलना में अधिक ज्वलनशील
ब्लॉक्स कोयले से सस्ता होने के साथ बायो फ्यूल होने से सरकार इसे प्राथमिकता दे रही है। प्लांट के निदेशक अश्विन नागर ने बताया कि यह ब्लॉक्स प्लांट में उपयोग होने वाले कोयले से 4 से 5 हजार रुपए टन सस्ता है। यह कोयले की तुलना में अधिक ज्वलनशील हैं।
बिना रसायनों से बने रहे ब्लॉक्स
यहां संचालित प्लांट में भूसे से ब्लॉक्स बनाने के लिए किसी भी प्रकार के रसायन व अन्य रॉ मैटेरियल की जरूरत नहीं पड़ती। स्टॉक किए गए भूसे की सफाई कर धूल मिट्टी और अन्य कचरे को अलग कर नमी को समाप्त किया जाता है। इसके बाद एक निर्धारित तापमान पर इन्हें कम्प्रेस कर ब्लॉक्स का निर्माण किया जाता है।
40 टन भूसे की प्रतिदिन खपत
इस प्लांट में ब्लॉक्स बनाने के लिए प्रतिदिन 40 टन भूसे की खपत हो रही है। धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाकर 150 टन प्रतिदिन तक की जाएगी। प्लांट के निदेशक अश्विन कुमार नागर ने बताया कि प्रदेश में झालावाड़ के खानपुर, बारां के मेरमा और टोंक के देवली में ही यह प्लांट स्थापित है।