शाही किला को करार किला और जौनपुर किला के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा है। सबसे पहले इस किले को एक टीले पर बनाया गया था और इसे केरार किला कहा जाता था। गोमती नदी पर बने शाही पुल के पास स्थित इस किले के निर्माण में इस्तेमाल की गई ज्यादातर सामग्री कन्नौजी के राठौड़ राजा के समय के ऐतिहासिक स्थलों की है। जौनपुर से 2.2 किमी दूर यह किला शहर का प्रमुख आकर्षण है। यह शाही किला, जिसे जौनपुर किला भी कहा जाता है, कई युद्धों और विनाश से गुजर चुका है, फिर भी यह मजबूत है और सुंदर अतीत का वर्णन करता है। यह तुगलक, लोढ़ी वंश और मुगलों के कई राजाओं के नियंत्रण में भी रहा है।
अटाला मस्जिद जौनपुर का एक प्रसिद्ध पर्यटन आकर्षण है, जो यहां के स्थानीय लोगो के साथ साथ पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस मस्जिद का निर्माण 1408 में यहां के शासक सुल्तान इब्राहिम शर्की ने बनवाया था। हालांकि इसकी आधारशिला 1377 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक तृतीय के शासनकाल में रखी गई थी। मस्जिद की परिसर में एक मदरसा भी मौजूद है। आज अटाला मस्जिद ,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखभाल में है।
फिरोज शाह तुगलक ने 15वीं शताब्दी में निर्मित जामा मस्जिद को बारी मस्जिद, जुमा मस्जिद और जामी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वास्तुशिल्पीय बनावट जौनपुर के ही अटाला मस्जिद और दिल्ली के मुगल स्मारकों से काफी मिलती-जुलती है। इस मस्जिद का निर्माण एक छह मीटर ऊंची नींव पर किया गया है। अंदर पहुंचने के लिए एक विशाल दरवाजा है, जिसके ऊपर दो मेहराब बने हुए हैं। यह इस्लामी और जौनपुर वास्तुकला का एकदम सही मिश्रण है। यदि आप जौनपुर की स्थापत्य सुंदरता की देखना चाहते हैं, तो आपको इस जामा मस्जिद को अवश्य देखना चाहिए।
कभी-कभी स्थानीय और कई पर्यटकों के बीच जौनपुर शाही ब्रिज शहर के नाम से भी जाना जाता है। भले ही यह 1 9 34 के भूकंप के दौरान आंशिक रूप से ध्वस्त हो गया, फिर इसका इस्तेमाल यातायात के लिए किया जा रहा है। शाही ब्रिज गोमती नदी पर बनाया गया है और जौनपुर में एक ऐतिहासिक स्थान है। पुल से इतर इस पर खंभों पर टिकी अष्ठभुजीय आकार की गुंबजदार छतरी भी बनी हुई है। इस छतरी में लोग खुद को पुल पर दौड़ती वाहनों से सुरिक्षत रख कर नदी की बहती धाराओं का विहंगम नजारा देखते हैं।
लाल दरवाजा मस्जिद या रूबी (लाल) गेट मस्जिद जौनपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। इसे 1447 में सुल्तान महमूद शर्की की बेगम बीबी राजी ने बनवाया था और यह मस्जिद जौनपुर के एक मुस्लिम संत मौलाना सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित है। इसे खास तौर से बेगम के निजी प्रार्थना कक्ष के रूप में बनवाया गया था। इस मस्जिद की वास्तुशिल्पीय शैली अटाला मस्जिद से काफी मिलती है। हालांकि आकार के मामले में यह अटाला मस्जिद से छोटा है। इसके उत्तर, पूर्व और दक्षिण में तीन दरवाजे हैं, जिसके जरिए इसके अंदर पहुंचा जा सकता है। इसका पूर्वी गेट लाल पत्थर से बना है। यही वजह है कि इसे लाल दरवाजा मस्जिद कहा जाता है।